Book Title: Char Tirthankar
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 118
________________ [ चार तीर्थकर : १११ से महावीर के पञ्चयाम धर्म के सुधार की जैन शास्त्र में वर्णित घटना की ऐतिहासिकता साबित हो जाती है। महावीर खुद नग्नअचेल थे फिर भी परिमित व जीर्ण वस्त्र रखनेवाले साधुओं को अपने संघ में स्थान देते थे ऐसा जो वर्णन आचारांग-उत्तराध्ययन में है उसकी ऐतिहासिकता भी बौद्ध ग्रन्थों से साबित हो जाती है क्योंकि बौद्ध ग्रन्थों में अचेल और एकसाटकधर श्रमणों का जो वर्णन है वह महावीर के अचेल और सचेल साधुओं को लागू होता है। जैन आगमों में महावीर का कुल ज्ञात कहा गया है, बौद्ध पिटकों में भी उनका वही कुल' निदिष्ट है। महावीर के नाम के साथ निर्ग्रन्थ विशेषण बौद्ध ग्रन्थों के आता है जो जैन-वर्णन की सच्चाई को साबित करता है। श्रेणिक-कोणिकादि राजे महावीर को मानते थे या उनका आदर करते थे ऐसा जैनागमों में जो वर्णन है वह बौद्ध पिटकों के वर्णन से भी खरा उतरता है। महावीर के व्यक्तित्व का सूचक दीर्घतपस्या का वर्णन जैनागमों में है उसकी ऐतिहासिकता बौद्ध ग्रन्थों से साबित होती है क्योंकि भगवान् महावीर के शिष्यों का दीर्घतपस्वी रूप से निर्देश उनमें आता है । जैनागमों में महावीर के विहारक्षेत्र का जो आभास मिलता है वह बौद्ध पिटकों के साथ मिलान करने से खरा ही उतरता है। जैनागमों में महावीर के बड़े प्रतिस्पर्धी गोशालक का जो वर्णन है वह भी बौद्ध पिटकों के संवाद से सच्चा ही साबित होता है। इस तरह महावीर के जीवनी के महत्त्व के अंशों को ऐतिहासिक बतलाने के लिए लेखक को बौद्ध पिटकों का सहारा लेना हो होगा। १. अंगुत्तर भाग, १.१५१ । भाग. २, १६८। सुमङ्गलाविला सिनी पृ० १४४ २. दीघनिकाय-सामफलसुत्त इत्यादि इत्यादि । ३. जैसी तपस्या स्वयं उन्होंने की वैसी ही तपस्या का उपदेश उन्होंने अपने शिष्यों को दिया था। अतएव उनके शिष्यों को बौद्ध ग्रंथ में जो दीर्घ तपस्वी विशेषण दिया गया है उससे भगवान् भी दीर्घतपस्वी थे ऐसा सूचित होता है । --देखो मज्झिमनिकाय-उपालिसुत्त ५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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