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भ० महावीर की मंगल विरासत आज का दिन सांवत्सरिक पर्व का है । यह जैनों की दृष्टि से अधिक पवित्र है । सब दिन की अपेक्षा आज का प्रभाव अधिक मंगल है और उसकी अपेक्षा भी जिस क्षण में हम लोग यहाँ एकत्र हुए हैं वह अधिक मांगलिक है । क्योंकि अन्य प्रसंग में सगे सम्बन्धी मित्र आदि मिलते हैं, किन्तु आज तो हम ऐसे लोग एकत्र मिले हैं जो प्रायः एक दूसरे को पहचानते तक नहीं। इसके पीछे भावना यह है कि हम सब भेद और गुटबन्दी को भूलकर किसी मांगलिक वस्तु को, जीवनस्पर्शी वस्तु को सुनें और उस पर विचार करें।
सामान्यतः हमें जो विरासत मिलती है वह तीन प्रकार की होती है। माता पिता आदि से शरीरसम्बद्धरूप, आकृति आदि गुण धर्म की विरासत यह प्रथम प्रकार है और माता पिता या अन्य से जन्म से पहले या बाद जो संपत्ति विरासत में मिलती है वह दूसरा प्रकार है। पहले और दूसरे प्रकार के बीच बड़ा भेद है, क्योंकि शारीरिक विरासत संतति के लिए अवश्यंभावी है जब कि संपत्ति के विषय में ऐसा नहीं है। प्रायः ऐसा होता है कि माता पिता ने संतति को कुछ भी संपत्ति विरासत में न दी हो फिर भी संतति नया उपार्जन करती है और ऐसा भी होता है कि बड़ों से प्राप्त
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