Book Title: Char Tirthankar
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 132
________________ चार तीर्थंकर : १२५ अधिक महत्व रखते हैं और जिनमें अनेक परानी बातें किसी न किसी प्रकार से यथार्थ रूप में सुरक्षित रह गई हैं, उनका उपयोग किया जायगा। साथ ही बौद्ध पिटक में पाये जानेवाले संवादी उल्लेखों का तथा नई खोज करनेवालों द्वारा उपस्थित की गई सामग्री में से उपयोगी अंश का भी उपयोग किया जायगा। दिगंबर-श्वेतांबर दोनों के ग्रंथों में वर्णित है कि, पार्श्वनाथ का जन्म काशी-बनारस में हआ और उनका निर्वाण सम्मेतशिखर वर्तमान पार्श्वनाथ पहाड़-पर हुआ। दोनों के चरित्रविषयक साहित्य से इतना तो निर्विवाद मालूम होता है कि, पार्श्वनाथ का धर्मप्रचार-क्षेत्र पूर्व भारत-खासकर गंगा के उत्तर और दक्षिण भाग में रहा । खुद पार्श्वनाथ की विहार भूमि की सीमा का निश्चित निर्देश करना अभी संभव नहीं, परन्तु उनकी शिष्यपरंपरा, जो पापित्यिक कहलाती है, उसके विहार क्षेत्र की सीमा जैन और बौद्ध ग्रन्थों के आधार पर, अस्पष्ट रूप में भी निर्दिष्ट की जा सकती है। अंगुत्तरनिकाय नामक बौद्ध ग्रन्थ में बतलाया है कि, वप्प नाम का शाक्य निर्ग्रन्थ श्रावक था। इसी मूल सुत्त की अट्ठकथा में वप्प को गौतम बुद्ध का चाचा कहा है। वप्प बुद्ध का समकालीन कपिलवस्तु का निवासी एक शाक्य था। कपिलवस्तु नेपाल की तराई में है। नीचे की ओर राव नदी-जो बौद्ध ग्रन्थों में अचिरावती नाम से प्रसिद्ध है, जो इरावतो भो कहलाती है - उसके तट पर श्रावस्ती नामक प्रसिद्ध शहर था, जो आजकल सहेटमहेट' कहलाता है। श्रावस्ती में पार्श्वनाथ की परंपरा का एक निर्ग्रन्थ केशी था,जो महावीर के मुख्य शिष्य गौतम से मिला था। उसी केशी ने पएसी नामक राजा को और उसके १. एक समयं भगवा सक्केसु विहरति कपिलवत्थुम्मिं । अथ खो वप्पो सक्को निगण्ठसावगो इ० ॥ -अंगुत्तर निकाय, चतुष्कनिपात, वग्ग ५ । TheDictionary of Pali Proper Names. Vol II, P. 832. २ श्री नन्दलाल डे : The Geographical Dictionary ofAncient and Mediaeval India, p. 189. ३. उत्तराध्ययनसूत्र, अ० २३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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