Book Title: Char Tirthankar
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 151
________________ १४४ : भगवान् पार्श्वनाथ की विरासत परंपरा का अनुगामी समझा जाता है, उसका दिगम्बर या श्वेतांबर श्रुत में कहीं भी निर्देश नहीं इसका क्या कारण ? क्या महावीर की परंपरा में सम्मिलित नहीं हुए ऐसे पाश्वपत्यिकों की परंपरा के साथ तो उसका सम्बन्ध रहा न हो ? इत्यादि प्रश्न भी विचारणीय हैं । प्रो० याकोबी ने कल्पसूत्र की प्रस्तावना में गौतम और बौधायन धर्मसूत्र के साथ निग्रंथों के व्रत-उपव्रत की तुलना करते हुए सूचित किया है कि, निर्ग्रथों के सामने वैदिक संन्यासी धर्म का आदर्श रहा है इत्यादि । परन्तु इस प्रश्न को भी अब नये दृष्टिकोण से विचारना होगा कि, वैदिक परंपरा, जो मूल में एकमात्र गृहस्था - श्रम प्रधान रही जान पड़ती है, उसमें संन्यास धर्म का प्रवेश कब कैसे और किन बलों से हुआ और अन्त में वह संन्यास धर्म वैदिक परंपरा का एक आवश्यक अंग कैसे बन गया ? इस प्रश्न की मीमांसा से महावोर पूर्ववर्ती निग्रंथ परंपरा और परिव्राजक परंपरा के सम्बन्ध पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ सकता है । परन्तु उन सब प्रश्नों को भावी विचारकों पर छोड़कर प्रस्तुत लेख में मात्र पार्श्वनाथ और महावीर के धार्मिक संबन्ध का ही संक्षेप में विचार किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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