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१२२ : भ० महावीर की मंगल निरासत उत्तम मङ्गल है। इसी को आदि, मध्य और अन्तिम मङ्गल कहा गया है । जैनसूत्र के 'चत्तारि मङ्गलं' पाठ में जो चौथा मङ्गल (धर्म) कहा गया है वह यही वस्तु है । __ अपने जीवनकाल में हमने देखा है कि गांधी जी ने उक्त विरासत में से कितना पाया और उसे किस प्रकार विकसित किया । आज के पवित्र क्षण में हम ऐसी ही किसी मांगलिक भावना को लेकर घर जायें कि हम भी ऐसी मांगलिक विरासत के पात्र कब बनें। ई० १९५० ]
[ अनु-दलसुख मालवणिया
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