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११२ : भगवान् महावीर का जीवन ]
बुद्ध और महावीर समकालीन और समान क्षेत्रविहारी तो थे ही पर ऐतिहासिकों के सामने एक सवाल यह पड़ा है कि दोनों में पहिले किसका निर्वाण हुआ ? प्रोफेसर याकोबी ने बौद्ध और जैन ग्रन्थों की ऐतिहासिक दृष्टि से तुलना करके अंतिम निष्कर्ष निकाला है कि महावीर का निर्वाण बुद्ध-निर्वाण के पीछे ही अमुक समय के बाद ही हुआ है । याकोबी ने अपनी गहरी छानबीन से यह स्पष्ट कर दिया है कि वज्जि - लिच्छिवियों का कुणिक के साथ जो युद्ध हुआ था वह बुद्ध-निर्वाण के बाद और महावीर के जीवनकाल में ही हुआ । वज्जि - लिच्छिवीगण का वर्णन तो बौद्ध और जैन ग्रन्थों में आता है पर इनके युद्ध का वर्णन बौद्धग्रन्थों में नहीं आता है जब कि जैनग्रन्थों में आता है । याकोबी का यह ऐतिहासिक निष्कर्ष महावीर की जीवनी लिखने में जैसा तैसा उपयोगी नहीं है । इससे ऐतिहासिक लेखक का ध्यान इस तत्त्व की ओर भी अपने आप जाता है कि भगवान् की जीवनी लिखने में आगमवर्णित छोटी बड़ी सब घटनाओं की बड़ी सावधानी से जाँच करके उनका उपयोग करना चाहिए ।
महावीर की जीवनी का निरूपण करने वाले कल्पसूत्र आदि अनेक दूसरे भी ग्रन्थ हैं जिन्हें श्रद्धालु लोग अक्षरशः सच्चा मान कर सुनते आये हैं पर इनकी भी ऐतिहासिक दृष्टि से छानबीन करने पर मालूम हो जाता है कि उनमें कई बातें पीछे से औरों की देखादेखी लोकरुचि की पुष्टि के लिए जोड़ी गई हैं । बौद्ध महायान परंपरा के महावस्तु, ललितविस्तर जैसे ग्रन्थों के साथ कल्पसूत्र की तुलना के बिना किये ऐतिहासिक लेखक अपना काम ठीक तौर से कर नहीं सकता । वह जब ऐसी तुलना करता है तब उसे मालूम पड़ जाता है कि भगवान् की जीवनी में आनेवाले चौदह स्वप्नों का वर्णन तथा जन्मकाल में और कुमारावस्था में अनेक देवों के गमनागमन का वर्णन क्यों और कैसे काल्पनिक तथा पौराणिक है ।
भगवान् पाश्र्वनाथ का जन्मस्थान तो वाराणसी था, पर उनका भ्रमण और उपदेश क्षेत्र दूर-दूर तक विस्तीर्ण था । इसी क्षेत्र में
१. 'भारतीय विद्या' सिंघी स्मारक अंक पृ० १७७ ।
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