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चार तीर्थंकर : ११३ चैशाली नामक सुप्रसिद्ध शहर भी आता है जहाँ भगवान् महावीर जन्मे । जन्म से निर्वाण तक में भगवान् की पादचर्या से अनेक छोटे बड़े शहर, कसबे गाँव, नदी, नाले, पर्वत, उपवन आदि पवित्र हुए, जिनमें से अनेक के नाम व वर्णन आगमिक साहित्य में सुरक्षित हैं । अगर ऐतिहासिक जोवनी लिखनी हो तो हमारे लिए यह जरूरी हो जाता है कि हम उन सभी स्थानों का आँखों से निरीक्षण करें। महावीर के बाद ऐसे कोई असाधारण और मौलिक परिवर्तन हए नहीं हैं जिनसे उन सब स्थानों का नामोनिशान मिट गया हो ।। ढाई हजार वर्षों के परिवर्तनों के बावजूद भी अनेक शहर, गाँव, नदी, नाले, पर्वत आदि आज तक उन्हीं नामों से या थोड़े बहुत अपभ्रष्ट नामों से पुकारे जाते हैं जब हम महावीर की जीवनचर्या में आने वाले उन स्थानों का प्रत्यक्ष निरीक्षण करेंगे तब हमें आगमिक वर्णनों की सच्चाई के तारतम्य की भी एक बहमूल्य कसौटी मिल जायगी, जिससे हम न केवल ऐतिहासिक जीवन को ही तादृश चित्रित कर सकेंगे बल्कि अनेक उलझी गुत्थियों को भी सुलझा सकेंगे । इसलिए मेरी राय में ऐतिहासिक लेखक के लिए कमसे कम भौगोलिक भाग का प्रत्यक्ष्य परिचय घम-घूम कर करना जरूरी है।
ऐतिहासिक जीवनी लिखने का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन परम्परागत आचार-विचार है। भारत की जनता पर खास कर जैनधर्म के प्रचारवाले भागों को जनता पर महावीर के जीवन का सूक्ष्म-सूक्ष्मतर प्रभाव देखा जा सकता है, पर उसकी अमिट और स्पष्ट छाप तो जैन-परम्परा के अनुयायी गृहस्थ और त्यागी के आचार-विचारों में देखी जा सकती है। समय के हेरफेर से, बाहरी प्रभावों से और अधिकार-भेद से आज के जैन समाज का आचारविचार कितना ही क्यों न बदला हो; पर यह अपने उपास्य देव महावीर के आचार-विचार के वास्तविक रूप की आज भी झाँकी करा सकता है। अलबत्ता इसमें छानबीन करने की शक्ति आवश्यक है । इस तरह हम ऊपर सूचित किये हुए तीनों साधनों का गहराई के साथ अध्ययन करके महावीर की एतिहासिक जीवनी तैयार कर सकते हैं, जो समय की माँग है । ई० १६४७]
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