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[चार तीर्थंकर : ७५.
बलभद्र को या गोप-गोपियों को पूर्व जन्म में साधी हुई देवियाँ सताया है, करीब-करीब वे हैं। ये देवियाँ जब कृष्ण, बलतमाम असुर, कृष्ण द्वारा या भद्र' या व्रजवासियों को सताती कभी-कभी बलभद्र द्वारा मार हैं तब वे कृष्ण द्वारा मारी डाले गये हैं।
नहीं जातीं वरन् उन्हें हराकर -भागवत स्कन्ध १०, अ०
जीती ही भगा देते हैं। हेमचन्द्र ५-८, पृ० ८१४
के (त्रिषष्टिः सर्ग ५, श्लो० १२३-१२४) वर्णन के अनुसार कृष्ण, बलभद्र और व्रजवासियों को सताने वाली देवियां नहीं वरन् कंस के पाले हुए उन्मत्त प्राणी हैं। कृष्ण उनका भी वध नहीं करते, किन्तु दयालू जैन की भांति पराक्रमी होने पर भी कोमल हाथ से इन कंस प्रेरित उपद्रवो प्राणियों को हराकर भगा देते हैं।
-हरिवंश, सर्ग ३५, श्लो० ३५-५०, पृ० ३६६-३६७
(५) नृसिंह विष्णु का एक (५) कृष्ण यद्यपि भविष्यअवतार है और कृष्ण तथा बल- कालीन तीर्थंकर होने के कारण भद्र दोनों विष्णु के अंश होने के मोक्षगामी हैं किन्तु इस समय कारण सदा मुक्त हैं और विष्णु- युद्ध के फलस्वरूप वे नरक में धाम स्वर्ग में विद्यमान है। निवास करते हैं और बलभद्र
-भागवत, प्रथम स्कन्ध, जैनदीक्षा लेने के कारण स्वर्ग अ० ३, श्लो. १-२४, पृ०१०-११ गये हैं। जिनसेन ने बलभद्र को
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