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[चार तीर्थंकर : ६६
लिए प्रतीतिकर नहीं बना सकता । जब कि ऐतिहासिक व्यक्ति कितनी ही असंगत दिखाई देने वाली पुरानी घटनाओं को या तो जीवनी में स्थान ही नहीं देगा या उनका प्रतीतिकर अर्थ लगावेगा जिसे सामान्य बुद्धि भी समझ और मान सके। इतनी चर्चा से यह भलीभाँति जाना जा सकता है कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण असंगत दिखाई देने वाली जीवन घटनाओं को ज्यों का त्यों मानने को तैयार नहीं, पर वह उन्हें बुद्धिग्राह्य कसौटी से कस कर सच्चाई की भूमिका पर लाने का प्रयत्न करेगा। यही सबब है कि वर्तमान युग उसी पुरानी सामग्री के आधार से, पर ऐतिहासिक दृष्टि से लिखे गये महावीर जीवन को ही पढ़ना-सुनना चाहता है। यही समय की माँग है। ___ महावीर की जीवनी में आनेवाली जिन असंगत तीन बातों का उल्लेख मैंने किया है उनका ऐतिहासिक खुलासा किस प्रकार किया जा सकता है इसे यहाँ बतला देना भी जरूरी है :
मानव-वंश के तो क्या पर समग्र प्राणी-वंश के इतिहास में भी आज तक ऐसी कोई घटना बनी हुई विदित नहीं है जिसमें एक संतान की दो जनक माताएँ हों। एक संतान के जनक दो-दो पिताओं की घटना का तो कल्पना में भी आना मुश्किल है। तिस पर भी जैन आगमों में महावीर की जनक रूप से दो माताओं का वर्णन है। एक तो क्षत्रियाणी सिद्धार्थपत्नी त्रिशला और दूसरी ब्राह्मणी ऋषभदत्तपत्नी देवानन्दा। पहिले तो एक बालक की दो जननियाँ ही असंभव तिस पर दोनों जननियों का भिन्न-भिन्न पुरुष की पत्नियों के रूप से होना तो और भी असम्भव है । आगम के पुराने भागों में महावीर के जो नाम मिलते हैं उनमें ऐसा एक भी नाम नहीं है जो देवानन्दा के साथ उनके माता-पुत्र के सम्बन्ध का सूचक हो फिर भी भगवती' जैसे महत्त्वपूर्ण आगम में ही अपने मुख्य गणधर इन्द्रभूति को संबोधित करके खुद भगवान् द्वारा ही ऐसा कहलाया गया है कि-यह देवनन्दा मेरी जननी है इसी से मुझे देखकर उसके
१. भगवती शतक ६ उद्देश ६ ।
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