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[चार तीर्थंकर : ६६ कवित्व की कल्पनाओं के रंग में रँग कर महावीर का सारा जीवन वर्णन किया है। इस वर्णन में से ऊपर जिन घटनाओं का उल्लेख किया गया है वे समस्त घटनाएँ यद्यपि चूणि में विद्यमान हैं, तथापि यदि हेमचन्द्र के वर्णन को और भागवत के कृष्ण-वर्णन को सामने रखकर एक साथ पढ़ा जाय तो जरूर ही मालूम पड़ने लगेगा कि हेमचन्द्र ने भागवतकार की कवित्वशक्ति के संस्कारों को अपनाया है। ___ अंगसाहित्य से लेकर हेमचन्द्र के काव्यमय महावीर-चरित तक, हम ज्यों-ज्यों उत्तरोत्तर आगे बढ़ते बाँचते हैं, त्यों-त्यों महावीर के जीवन की सहज घटनाएँ कायम तो रहती हैं मगर उनपर दैवी और चमत्कारी घटनाओं का रंग अधिकाधिक भरता जाता है । अतएव जान पड़ता है कि जो घटनाएँ अस्वाभाविक प्रतीत होती हैं और जिनके बिना भी मूल जैनभावना अबाधित रह सकती है, वे घटनाएँ किसी न किसी कारण से जैन साहित्य में-महावीर जीवन में बाहर से आ घुसी हैं। ___ इस बात को सिद्ध करने के लिये यहाँ एक घटना पर विशेष विचार करना अप्रासंगिक न होगा। आवश्यक नियुक्ति, उसके भाष्य
और चूर्णि में महावीर के जीवन की तमाम घटनाएँ संक्षेप या विस्तार से वणित हैं। छोटी-बड़ी तमाम घटनाओं का संग्रह करके उनको सुरक्षित रखने वाली नियुक्ति, भाष्य तथा चूणि के लेखकों ने महावीर द्वारा सुमेरु कँपाने के आकर्षक वृत्तान्त का उल्लेख नहीं किया, जबकि उक्त ग्रन्थों के आधार पर महावीर-जीवन लिखने वाले हेमचन्द्र ने मेरु-कम्पन का उल्लेख किया है । आचार्य हेमचन्द्र द्वारा किया हुआ यह उल्लेख यद्यपि उसके आधारभूत नियुक्ति, भाष्य या चणि में नहीं है फिर भी आठवीं शताब्दी के दिगम्बर कवि रविषेणकृत पद्मपुराण में है ।। रविषेण ने यह वर्णन प्राकृत के 'पउ'मचरिय' से लिया है क्योंकि रविषेण का पद्मपुराण प्राकृत पउमचरिय का अनुकरणमात्र है और पउमचरिय (द्वि० पर्व, श्लो० २५-२६, पृ० ५) में यह वर्णन उल्लिखित है।
1 द्वितीय पर्व, श्लोक ७५-७६, पृष्ठ १५ ।
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