Book Title: Char Tirthankar
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 74
________________ [चार तीर्थंकर : ६७ चमत्कारी प्रसंग तो चाहे जिनके जीवन में लिखे हुये पाये जा सकते हैं। अतएव जब धर्मवीर दीर्घ तपस्वी के जीवन में पग-पग पर देवों का आना देखा जाता है, दैवी उपद्रवों को बाँचा जाता है और असंभव प्रतीत होनेवाली कल्पनाओं का रंग चढ़ा हुआ नजर आता है तो ऐसा मालूम होने लगता है कि भगवान महावीर के जीवनवृत्तांत में मिली हुई ये घटनाएँ वास्तविक नहीं हैं। ये घटनाएँ समीपवर्ती वैदिक-पौराणिक वर्णन में से बाद में ले ली गई हैं। इस विधान को स्पष्ट करने के लिए यहाँ दो प्रकार के प्रमाण उपस्थित किये जाते हैं : (१) प्रथम यह कि स्वयं जैन-ग्रन्थों में महावीर-जीवन-संबंधी उक्त घटनाएँ किस क्रम से मिलती हैं और (२) दूसरे यह कि जैन-ग्रन्थों में वर्णित कृष्ण के जीवन-प्रसंगों की पौराणिक कृष्ण-जीवन के साथ तुलना करना और इन जैन तथा पौराणिक ग्रंथों के समय का निर्धारण करना। (१) जैन सम्प्रदाय में मुख्य दो फिरके हैं-दिगम्बर और श्वेताम्बर। दिगम्बर फिरके के साहित्य में महावीर का जीवन बिलकुल खंडित है और साथ ही इसी फिरके के अलग-अलग ग्रंथों में कहीं-कहीं कुछ-कुछ विसंवादी भी है। अतएव यहाँ श्वेताम्बर फिरके के ग्रंथों को ही सामने रखकर विचार किया जाता है । सबसे प्राचीन माने जानेवाले अंग साहित्य में सिर्फ दो अंग ही ऐसे हैं कि जिनमें महावीर के जीवन के साथ उल्लिखित घटनाओं में से किसी-किसी की झलक नजर आती है। आचारांगसूत्र के-जो पहला अंग है और जिसकी प्राचीनता निर्विवाद सिद्ध है-पहले श्रुत-स्कन्ध (उपधान सूत्र अ० ६) में भगवान् महावीर की साधक अवस्था का वर्णन है। परन्तु इसमें किसी भी देवी, चमत्कारी या अस्वाभाविक उपसर्ग का नामनिशान तक नहीं है । इसमें तो कठोर साधक के लिये सुलभ बिलकुल स्वाभाविक मनुष्यकृत तथा पशुपक्षीकृत उपसर्गों का वर्णन है, जो अक्षरशः सत्य प्रतीत होता है और एक वीतराग संस्कृति के निर्देशक शास्त्र के साथ सामंजस्य रखने वाला मालूम होता है। बाद में मिलाये हुये माने जाने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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