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५८ : चार तीर्थंकर] हुआ । अन्त में धर्म की आराधना में अपनी जगह चला गया। करके वह देवलोक में गया। -भागवत दशमस्कन्ध,अ० ३४, -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, श्लोक ५-१५, पृष्ठ ६१७-१८ । पर्व १०, सर्ग ३, पृष्ठ ३८-४० ।
(३) दीर्घ तपस्वी एक बार (३) एक बार कृष्ण का वध गंगा पार करने के लिए नाव में करने के लिए कंस ने तृष्णासुर बैठकर परले पार जा रहे थे। नामक असुर को व्रज में भेजा। उस समय इन तपस्वी को नाव वह प्रचण्ड आँधी और पवन के में बैठा जानकर पूर्वभव के बैरी रूप में आया। कृष्ण को उड़ासुदंष्ट्र नामक देव ने उस नाव को कर ऊपर ले गया परन्तु इस उलट देने के लिये प्रबल पवन की पराक्रमी बालक ने उस असुर सृष्टि की और गंगा तथा नाव का गला ऐसा दबाया कि उसकी को हचमचा डाला। यह तपस्वी आँखें निकल पड़ी और अन्त में तो शान्त और ध्यानस्थ थे परंतु प्राणहीन होकर मर गया। दूसरे दो सेवक देवों ने इस घटना
कुमार कृष्ण सकुशल ब्रज में का पता लगते ही आकर उस
उतर आये। उपसर्गकारक देव को हराकर
-भागवत दशमस्कन्ध,अ० ११, भगा दिया। इस प्रकार प्रचण्ड
श्लोक २४-३० पवन का उपसर्ग शान्त हो जाने पर उस नाव में भगवान् के साथ बैठे हुए अन्य यात्री भी सकुशल अपनी-अपनी जगह पहुंचे। -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, स० ३, पृष्ठ ४१-४२ ।
(४) एक बार दीर्घ तपस्वी (४) एक बार यमुना के एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। किनारे व्रज में आग लग गयी। वहीं पास में वन में किसी के उस भयंकर अग्नि से तमाम द्वारा सुलगाई हुई अग्नि फैलते- व्रजवासी घबरा उठे परंतु कुमार फैलते इन तपस्वी के पैर में आ- कृष्ण ने उससे न घबराकर कर छुई। सहचर के रूप में जो अग्निपान कर उसे शान्त कर गोशालक था वह तो अग्नि का दिया।
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