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५६ : चार तीर्थंकर ]
प्रमाण करके अपने रास्ते चला
गया ।
- त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग २, पृ० २१-२२ ।
( १ ) एक बार दीर्घ तपस्वी वर्द्धमान ध्यान में लीन थे । उस समय शूलपाणि नामक यक्ष ने पहले-पहल तो इस तपस्वी को हाथी का रूप धारण करके कष्ट पहुंचाया, परन्तु जब इस कार्य में सफल न हुआ तो उसने एक विचित्र सर्प का रूप धारण करके भगवान् को डंक मारा तथा मर्मस्थानों में असह्य वेदना उत्पन्न की। यह सब होने पर भी जब वे अचल तपस्वी जरा भी क्षुब्ध न हुये तो उस यक्ष का रोष शान्त हो गया । उसने अपने दुष्कर्म के लिये पश्चात्ताप किया और अन्त में भगवान् से क्षमा माँगकर उनका भक्त बन गया । - त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, पृष्ठ ३२-३३ ।
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अन्त में सब सकुशल वापस लौटे ।
- भागवत दशमस्कन्ध, अ०२०, श्लो० १८-३०, पृ० ८६६ |
( ४ ) साधक अवस्था
(१) कालिय नामक नाग यमुना के जल को जहरीला कर डालता था । इस उपद्रव को मिटाने के लिए कृष्ण ने, जहाँ कालिय रहता था वहाँ जा कर उसे मारा | कालिय नाग ने इस साहसी तथा पराक्रमी बालक का सामना किया । उसने डंक मारा । मर्मस्थानों में डंक मारा और अपने अनेक फणों से कृष्ण को सताने का प्रयत्न किया । परन्तु इस दुर्दात चपल बालक ने नाग को हाय तबाह कराया और अन्त में उसकी फणों पर नृत्य किया । नाग अपने रोष को शान्त करके तेजस्वी कृष्ण की आज्ञा के अनुसार वहाँ से चला गया और समुद्र में जा बसा ।
- भागवत दशमस्कन्ध, अ० १६, श्लोक ३-३०, पृष्ठ ८५८-५६ ।
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