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[धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ५६ उपद्रव देखकर भाग छूटा, परन्तु -भागवत दशमस्कन्ध, अ० ये दीर्घ तपस्वी ध्यानस्थ एवं १७, श्लोक २१-२५, पृष्ठ स्थिर ही बने रहे। अग्नि का
८६६-६७। उपद्रव स्वयं शान्त हो गया। -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, पृ० ५३ ।
(५) एक बार दीर्घ तपस्वी (५) कृष्ण के नाश के लिये ध्यान में थे। उस समय किसी कंस द्वारा भेजी हुई पूतनाराक्षसी पूर्व जन्म की अपमानित उनकी व्रज में आई। इसने बालक कृष्ण पत्नी और इस समय व्यन्तरीके को विषमय स्तनपान कराया रूप में मौजूद कटपूतना (दिम्ब- परन्तु कृष्ण ने इस षडयन्त्र को राचार्य जिनसेनकृत हरिवंश ताड़ लिया और उसने स्तन का पुराण के अनुसार कुपूतना-सर्ग ऐसी उग्रता से पान किया कि ३५ श्लोक ४२ पृ० ३६७) जिससे वह पीडित होकर फट आई । अत्यन्त ठण्ड होने पर भी पड़ी और मर गई। इस वैरिणी व्यन्तरी ने दीर्घ -भागवत दशमस्कन्ध, अ० ६. तपस्वी पर खूब ही जल के बूंद श्लोक १-६, पृ० ८१४ । उछाले और कष्ट देने का प्रयत्न किया। कटपूतना के उग्र परिषह से यह तपस्वी जब ध्यान से विचलित न हुये तब अन्त में वह शान्त हई, पैरों में गिरी और तपस्वी की पूजा करके चली गई।
-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, पृ० ५८ ।
(६) दीर्घ तपस्वी के उग्र (६) एक बार मथुरा में तप की इन्द्र द्वारा की हुई प्रशंसा मल्लक्रीड़ा के प्रसंग की योजना सुनकर उसे सहन न करने वाला कर कंस ने तरुण कृष्ण को संगम नामक देव परीक्षा करने आमंत्रण दिया और कुवल
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