Book Title: Char Tirthankar
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 68
________________ [धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ६१ कर यहाँ यह विचार करना है कि उक्त दोनों महापुरुषों की जीवनघटनाओं का ऊपरी ढाँचा एक सरीखा होने पर भी उनके अन्तरंग में जो अत्यन्त भेद दिखाई दे रहा है, वह किस तत्त्व पर, किस सिद्धान्त पर और किस दृष्टि-बिन्दु पर अवलम्बित है ? __उक्त घटनाओं की साधारण रूप से किन्तु ध्यानपूर्वक जाँच करने वाले पाठक पर तुरन्त ही यह छाप पड़ेगी कि एक प्रकार की घटनाओं में तप, सहिष्णुता और अहिंसाधर्म झलक रहा है, जब कि दूसरी प्रकार की घटनाओं में शत्रु-शासन, युद्ध-कौशल और दुष्टदमन कर्म का कौशल झलक रहा है। यह भेद जैन और वैदिकसंस्कृति के तात्त्विक भेद पर अवलम्बित है। जैन-संस्कृति का मूल तत्त्व या मूल सिद्धान्त अहिंसा है। जो अहिंसा की पूर्णरूप से साधना करे या उसकी पराकाष्ठा को प्राप्त हो गया हो, वही जैनसंस्कृति में अवतार बनता है। उसी की अवतार के रूप में पूजा होती है । वैदिक-संस्कृति में यह बात नहीं। उसमें तो जो पूर्ण रूप से लोक-संग्रह करे, सामाजिक नियम की रक्षा के लिये जो स्वमान्य सामाजिक नियमों के अनुसार सर्वस्व अर्पण करके भी शिष्ट का पालन और दुष्ट का दमन करे, वही अवतारी बनता है और अवतार के रूप मे उसी की पूजा होती है। तत्त्व का यह भेद कोई मामूली भेद नहीं है। क्योंकि एक में उत्तेजना के चाहे जैसे प्रबल कारण विद्यमान हों, हिंसा के प्रसंग मौजूद हों, तो भी पूर्णरूप से अहिंसक रहना पड़ता है। जबकि दूसरी संस्कृति में अंतःकरण की वृत्ति तटस्थ और सम होने पर भी, विकट प्रसंग उपस्थित होने पर प्राणों की बाजी लगाकर अन्यायकर्ता को प्राण-दण्ड तक देकर, हिंसा द्वारा भी अन्याय का प्रतिकार करना पड़ता है। जब इन दोनों संस्कृतियों में मूलतत्त्व और मूलभावना में ही भिन्नता है तो दोनों संस्कृतियों के प्रतिनिधि माने जाने वाले अवतारी पुरुषों की जीवन-घटनाएँ इस तत्त्व-भेद के अनुसार योजित की जायँ, यह जैसे स्वाभाविक है उसी प्रकार मानस-शास्त्र की दृष्टि से भी उचित है। यही कारण है कि हम एक ही प्रकार की घटनाओं को उक्त दोनों महापुरुषों के जीवन में भिन्न-भिन्न रूप में योजित की हुई देखते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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