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[धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ५५ एक मत्सरी देव भगवान् के रूप धारण किया और बीच पराक्रम की परीक्षा करने आया। रास्ते में पड़ा रहा। वह कृष्ण पहले उसने एक विकराल सर्प के साथ समस्त बालकों को का रूप धारण किया। यह देख- निगल गया। यह देखकर कृष्ण कर दूसरे राजकुमार तो डरकर इस सर्प का गला इस तरह दबा भाग गये, परन्त कुमार महावीर लिया कि जिससे उस सर्प अघाने जरा भी भयभीत न होते हये सुर का मस्तक फट गया, उसका उस साँप को रस्सी की भाँति दम निकल गया और वह मर उठाकर दूर फेंक दिया।
गया। सब बालक उसके मुख में
से सकुशल बाहर निकल आये। -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र,
यह वृत्तान्त सुनकर कंस निराश पर्व १०, सर्ग २, पृष्ठ २१ ।। हमा और देवता तथा ग्वाल
प्रसन्न हुये। -भागवत दशमस्कन्ध, अ०११, श्लो० १२-३५, पृष्ठ ८३८ ।
(२) फिर इसी देव ने महा- (२) आपस में एक दूसरे वीर को विचलित करने के लिए को घोड़ा बनाकर उस पर चढ़ने दूसरा मार्ग लिया। जब सब का खेल कृष्ण और बलभद्र बालक आपस में घोड़ा बनकर, ग्वाल-बालकों के साथ खेल रहे एक दूसरे को वहन करने का थे। उस समय कंस द्वारा भेजा खेल खेल रहे थे तब वह देव हुआ प्रलम्ब नामक असुर उस बालक का रूप धरकर महावीर खेल में सम्मिलित हो गया। वह का घोड़ा बन गया। उसने दैवी कृष्ण और बलभद्र को उड़ा ले शक्ति से पहाड़-सा विकराल रूप जाना चाहता था। वह बलभद्र बनाया, फिर भी महावीर इससे को घोड़ा बनाकर उन्हें दूर ले तनिक भी न डरे और घोडा गया और एक प्रचण्ड एवं बनकर खेलने के लिये आये हये विकराल रूप उसने प्रकट किया। उस देव को सिर्फ एक मुट्ठी अन्त में बलभद्र ने भयभीत न मार कर झुका दिया। अन्त में होते हुये सख्त मुष्टि प्रहार किया यह परीक्षक मत्सरी देव भगवान् जिससे उसके मुंह से खून गिरने के पराक्रम से प्रसन्न होकर, उन्हें लगा और उसे मार डाला।
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