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[ भगवान् नेमिनाथ और कृष्ण : ३१
पशुहिंसा के ख्याल से दुःखित होकर नेमिनाथ साधु बन जाते हैं । राजीमती भी नेमिनाथ के प्रति राग के कारण नहीं किन्तु सच्चे त्याग से प्रेरित होकर साध्वी बन जाती है । वह रथनेमि की चंचल वृत्ति का संयम में स्थिरीकरण करती है । ऋग्वेद में यम और यमी इन दोनों भाई बहन का वर्णन आता है । उसमें यमी को लग्न की इच्छा होती है किन्तु उसका भाई यम उसे संयम में स्थिर करता है । नेमिनाथ और राजीमती के जीवन के ये प्रसंग छोटे होने पर भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जैन - आदर्श में जो संत और त्याग के आदर्श का स्थान है वह हमें नेमिनाथ और राजीमती के जीवन में प्रत्यक्ष होता है ।
वस्तुतः कृष्ण ने ही गीता का बोध दिया हो या उनके बाद किसी ने उनके नाम से गीता को लिखा हो किन्तु वह निःसंदेह अत्यन्त जीवन-स्पर्शी है और उसमें वैदिक संस्कृति का सार आ जाता है। यही कारण है कि वह आज धार्मिक साहित्य में श्रेष्ठ है ।
नेमिनाथ के जीवन में जैसा प्रसंग है उससे भिन्न प्रकार का प्रसंग कृष्ण के जीवन में है । अतिवृष्टि के कारण पीड़ित पशुओं की उन्होंने गोवर्धन पर्वत का उत्तोलन कर रक्षा की थी और आज भी जगह-जगह ब्राह्मण-परंपरा की ओर से गौशालाओं का संचालन हो रहा है । इन गौशालाओं में अधिकांश गायें ही रखी जाती हैं ।
अन्य प्रान्तों में गौओं की रक्षा की व्यवस्था तो हो ही जाती है किन्तु गौ के उपरांत अन्य पशुओं की भी रक्षा की व्यवस्था अधिकांश में गुजरात में ही देखी जाती है उसका कारण नेमिनाथ के जीवन का असर हो तो कोई आश्चर्य नहीं । अतएव हम कृष्ण को गौरक्षक और नेमिनाथ को पशु-रक्षक के रूप में पहचान सकते हैं । कृष्ण का सम्बन्ध गोपालन, गोसंवर्धन के साथ माना गया है । इसी प्रकार नेमिनाथ का सम्बन्ध पशु-पालन और पशु-रक्षण के साथ है । इसकी साबिती गिरनार और काठियावाड़ में मिलती है ।
नेमिनाथ का सम्बन्ध व्यवहारमार्ग से अर्थात् प्रवृत्तिमार्ग से नहीं रहा ऐसा प्रतीत होता है । कोई भी व्यक्ति त्यागी होने के बाद उनके जीवन से पर्याप्त मात्रा में सबक सीख सकता है । जब
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