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[धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ४७ चार महान् आर्य-पुरुष
महावीर और बुद्ध की ऐतिहासिकता निर्विवाद है-उसमें सन्देह को जरा भी अवकाश नहीं है, जब कि राम और कृष्ण के विषय में इससे उलटी ही बात है। इनकी ऐतिहासिकता के विषय में जैसे प्रमाणों की आवश्यकता है वैसे प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अतः इनके सम्बन्ध में परस्पर विरोधी अनेक कल्पनाएँ फैल रही हैं। इतना होने पर भी प्रजा के मानस में राम और कृष्ण का व्यक्तित्व इतना अधिक व्यापक और गहरा अंकित है कि प्रजा के विचार से तो ये दोनों महान् पुरुष सच्चे ऐतिहासिक ही हैं । विद्वान्
और संशोधक लोग उनकी ऐतिहासिकता के विषय में भले ही वादविवाद और ऊहापोह किया करें, उसका परिणाम भले ही कुछ भी हो, फिर भी जनता के हृदय पर इनके व्यक्तित्वकी जो छाप बैठी हुई है, उसे देखते हुए तो यह कहना ही पड़ता है कि ये दोनों महापुरुष जनता के हृदय के हार हैं। इस प्रकार विचार करने से प्रतीत होता है कि आर्यप्रजा में मनुष्य के रूप में पूजित चार ही पुरुष हमारे सामने उपस्थित होते हैं और आर्यधर्म की वैदिक, जैन और बौद्ध तीनों शाखाओं के पूज्य पुरुष उक्त चार ही हैं। यही चारों पुरुष भिन्न-भिन्न प्रान्तों में, भिन्न-भिन्न जातियों में भिन्नभिन्न रूप से पूजे जाते हैं। चारों को संक्षिप्त तुलना__राम और कृष्ण एवं महावीर और बुद्ध ये दोनों युगल कहिये या चारों महान् पुरुष कहिये, क्षत्रिय जातीय हैं। चारों के जन्मस्थान उत्तर-भारत में हैं और सिवाय रामचन्द्रजी के, किसी का भी प्रवृत्तिक्षेत्र दक्षिण भारत नहीं बना ।
राम और कृष्ण का आदर्श एक प्रकार का है और महावीर तथा बुद्ध का दूसरे प्रकार का। वैदिकसूत्र और स्मृतियों में वर्णित वर्णाश्रम धर्म के अनुसार राज्यशासन करना, गोब्राह्मण का प्रतिपालन करना, उसी के अनुसार न्याय-अन्याय का निर्णय करना और इसी प्रकार न्याय का राज्य स्थापित करना यह राम और कृष्ण के उपलब्ध जीवन-वृत्तान्तों का आदर्श है। इसमें भोग है, युद्ध
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