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[ भगवान् ऋषभदेव और उनका परिवार : ३३
आर्यसंस्कृति का सच्चा स्वरूप जान सकते हैं । गोपालन और पशुपालन की आवश्यकता उन्हीं के जीवन से सीखनी होगी । अन्तिम समय में बाण मारने वाले को भी कृष्ण उदार चित्त से क्षमादान देते हैं इतना ही नहीं, किन्तु उसे पशुपालन का बोध देते हैं । महावीर एवं बुद्ध जैसे सभी महापुरुषों के जीवन में ऐसे दृष्टांत मिलते हैं । वस्तुतः वे सभी स्थूल जीवन के प्रति निर्भय होते हैं ।
अतएव मैं जैनों से कृष्ण के जीवन को पढ़ने की सिफारिश करता हूँ और जैनेतरों को नेमिनाथ और राजीमती की कथा को सहानुभूति से पढ़ने का सूचन करता हूँ । इससे पारस्परिक पूर्वाग्रहों का लोप होगा और आर्य संस्कृति की दोनों बाजुओं का दर्शन होगा । व्यवहार के कार्य करते हुए अलिप्त रहने की भावना कृष्ण के जीवन से प्राप्त होती है । नेमिनाथ और कृष्ण के जीवन में वस्तुतः कुछ भी विरोध नहीं है । जो कुछ दीखता है वह स्थूल विरोध मात्र है ।
[ अनु० - दलसुख मालवणिया ]
प्रबुद्ध जैन ] १५-११-४१
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