________________
२६ : चार तीर्थंकर] करती है। सुन्दरी के कथानक में इससे बिल्कुल उल्टा है। भरत . सुन्दरी के साथ विवह करना चाहता है जब कि सुन्दरी भाई भरत की मांग को पसन्द नहीं करती। माँग को अस्वीकार करते हुए सुन्दरी कुपित नहीं होती और सुन्दरी का विपरीत मत देखकर भरत रोष नहीं लाता बल्कि दोनों में आपसी सौमनस्य बढ़ता है । यम-यमी और भरत-सुन्दरी के प्रसंग भाई-बहिन के लग्न-व्यवहार की नीति के अन्तिम प्रसंग हो ऐसा लगता है। परन्तु ऋग्वेद के यमी सूक्त में दिये हुए प्रसंग की अपेक्षा जैन-परम्परा में दिया हुआ भरत-सुन्दरी का प्रसंग विशेष सात्त्विक है, क्योंकि पहले प्रसंग में यमी सात्त्विकता खो देती है जब कि दूसरे प्रसंग में सुन्दरी और भरत दोनों सात्त्विकता में अवगाहन करके पवित्र हो जाते हैं। ___ बाहुबली को प्रतिबोध देने की बात कई दृष्टियों से महत्त्व की है। पहली बात तो यह है कि एक महान बली और अभिमानी पुरुषकेसरी साधु प्रतिबोध का लक्ष्य है और प्रतिबोध करने वाली दो अबलाएँ उसके नीचे के दर्जे की साध्वियाँ हैं । ऐसा होते हुए भी प्रतिबोध का परिणाम आश्चर्यजनक होता है। बहनों की नम्र किन्तु निर्भय बात भाई को सीधे हृदय में जाकर लगती है और वह क्षणमात्र में अपनी भूल को पहचान कर दूसरे ही क्षण उसका संशोधन कर डालता है-जैसे कि राजीमती का उलाहना सुन कर उसके देवर तपस्वी साधु रथने मि का हृदय जागृत हो उठता है। क्या आजकल के तुमुल धार्मिक युद्ध में संलग्न गृहस्थ या साधुपुरुषवर्ग को उनकी भूल समझाने वाली और सत्य से उनकी आँखें खोलने वाली ज्यादा नहीं तो एकाध बहिन भी ब्राह्मी-सुन्दरी का प्रातःस्मरण करने वाले जैन समाज में नहीं हैं ? क्या ब्राह्मी और सुन्दरी का महत्त्व गाने वाला सारा वर्तमान जैन अबला-समाज सचमुच ही साहस और विचारों में वन्ध्या हो गया है ? इसमें एक
आज्ञापयति तातस्त्वां ज्येष्ठायं भगवानिदम् । हस्तिस्क-धाधिरूढानामुत्पद्यत न केवलम् ॥७८८॥
-त्रिष० १. ५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org