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वर्णाः
श्रीदे
५ अष्टाविंशतिश्चतुस्विंशत् ७ एकत्रिंशत् ८ द्वादश गुरवो-द्विगुणितरूपाः, नतु संयोगे पूत्रों गुरुरित्यादिलक्षणलक्षिताः वर्णाचैत्यश्री अक्षराणि, तत्र नमस्कारे द्वितीयपदे द्धा प४ ज्झा प ५ व प ६ काप ७ बप्पाप ८ व्ये इति सप्त, अन्ये तु पणासणोत्ति पस्य धर्मसंघा- लघुत्वात् पद गुरुन् भणंति, आह च-छक्कूणसेस लहुआ नवकारे अक्खर दुसट्टति, च्छेजात्थ इति क्षमणाश्रमणे त्रयः, ऐर्याचारविधौ । पथिक्यां प्रथमपदे च्छा प२ क प ६७८५९ तिट्टीक्क प १७ ति प२.हि प२३६ प २६ स्सन्छाक प२७ स्स त ॥३४५॥ २८ च्छित्त ३०ल्ली प ३१ म्माग्घाहा प ३२ स्मग्गं इति चतुर्विंशतिः। केचित ठाणायो द्वाणति पंचविंशतितम भणति ३।
शक्रस्तवे प्रथमपदे त्यु प ४ स्थ प ५ द्धा प ६ त प ९ थी प १० त प १४ जो प १६ खुप १७ ग प २० म्म | प २१ म्म प२२म्म प २३ म्म प २४ म्मकट्टी प २५ प्प प २६ १ प २८ न्ना प २९ द्धा प ३० ता प३१ बन्नूव प ३२ कखव्वात्तिद्धित्ता इत्येकान्नत्रिंशत् । तथा जे य अईआ सिद्धेत्यादिगाथायां प१द्धा प २ सं ३ प ४ व्वे इति चत्वारः, उभये मिलिताः सकलशक्रस्तवदंडके त्रयस्त्रिंशत् , केचिचतुस्त्रिंशत्तमं विअच्छउमेति च्छकारं मन्यते ४ । चैत्यस्तबदंडके प२ स्सग्गं प३त्ति प ४ चिप ५ कात्ति प६ म्माति प ७ति प८ ग्गत्ति प ९द्धा प १३ प्पे १४ ड्ट प १५ स्सग्गं १६ त्र त्य प २१ ड्डु प २२ ग्गे प२४ तच्छा प २७ द्वि प ३० ग्गो प ३१ ज प ३२ स्सगो प ३३ का ५४२ प्पा इत्येको. नत्रिंशत् , एके तु काउसग्गेत्यत्र सकारस्य लघुत्वं मन्वानाः षट्विंशति भणंति, तथा च-पगवोमं चउवीसं अउणत्तीसं च पंचतीसा य । गुणतीसं इरियावहिसक्थयाईसु गुरुवण्णा ॥१॥ नामस्तवदंडके प १ स्मज्जो प२ म्मत्थ प३ तस्सं १७ प्प प| ८प्प प ९फप१० जंज प १२ म्म प १३ ल्लिं प १४ व १५१ १६द्ध प २० त्थ प २१ त्ति प २२ सत्तद्धा प २३
HAMRPAIRMIRSIP
॥३४५॥