Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 472
________________ प्रभावती कथा श्रीदे तुम पंचसेलेपह ॥१२॥ किमहं करोमि ! कत्थबयामिजयंतओ इमो ताहि । चंपुजाणे नेउं मुको करसपुंडे काउं ॥१२॥ उवचैत्यश्री- लक्खिय लोएणं पुढो सो कहइ निययवुत्ततं । सुमरतो ताओ अग्गिसाहणं काउमाढत्तो ॥१४॥ जिणपवयणकुसलेणं नाइलसड्डेण धर्म संथा Nird तस्स मिचेणं । सो भणिओ धम्मंचिय कामत्थीऽविहु कुणसु भद्द ! ॥१५॥ यतः-"धनदो धनार्थिनां धर्मः, कामदः सर्वकामि-| चारविधौ नाम् । स्वग्गापवर्गयोधर्मः, पारंपर्येण साधकः॥१६॥"इय वारिओवि तेणं सनियाणो इंगिणीइ सो मरिउं । जाओ पणसेलपहू ॥४४४॥ पचजिय नाइलोऽवि मओ ॥१७॥ जाओ अच्चुयदेवो अह नंदीसरि सुराण जंताणं । पुरओ गायंतीओ हासपहासाओ चलियाओ | ॥१८॥ सो ताहिं भणिओ पडहवायणे इच्छए न दप्पेण | पडहो गले विसग्गो तस्स न उत्तरइ कहकहपि ॥ १९॥ तो ताहिं सो भणिओ इहऽप्पणो सामि! एस अहिगारो। अह वायंतो गच्छइ पडहं ताणं सुराण पुरो॥२०॥ तंदनाइलसुरो नियमित्तं ओहिणा नियं स्वं । तब्बोहकए दंसह न चयइ निइउंस दटुंपि।।२१॥ सो संहरिय सतेयं जंपइ भो भद्द ! मं वियाणासि | सोआह सकपमुहे देवे को नणु न याणेति ? ।।२२।। अह साक्गस्त्रं से दंसिय तं पड़ मरो भणइ मित्तं । जिणधम्मं अकरिय जलणसाहणं कासि तं मूढ ! ॥२३॥ तुह घेरग्गेण अहं जिणदिक्खं काउ अच्चुए जाओ। अमरो तं सोउ इमो अणुतावा भणइ नियमित्तं ॥२४॥ इण्हि मह कहसु किश्च स आह गिहवासि चित्तसालाए । उस्सम्गठियस्स तुमं कारसु वीरस्स वरपडिमं ॥ २५ ॥ जेण तुमं अण्णभवे सुरोहिवीय लहेसि भो भद्द ! । दारिदं दोगचं दीणत्तं नेव पावेसि ॥२६॥ तं सोउ विज्जुमाली तुट्ठो नाइलमुरम्स नमिय पए | खत्तियकुंडग्गामे गंतुं दटुं महावीरं ॥ २७ ॥ गंतुं महहिमवंते छित्तुं गोसीसचंदणं पवरं । वीरस्स काउ पडिमं खिविय सयं घडियसंपुडए ॥ २८ ॥ पत्तो जलहिंमि तया पोयस्सुप्पायओ भमंतस्स । छम्मासा बोलीगा तो सो संहरिय उप्पायं ॥ २९ ॥ PREMIRAHMINA India - NAMAH AGI ॥४४४||

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