Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 415
________________ FA श्रीदे० सुमेरुसिहरे लहु वंदावेमि तं देवे ॥१०॥ आह मुणी जइ हुज्जिह थीसंघट्टो वयाइयारकरो। ता मझ धम्मसीले ! अलमित्थ | मथराक्षचैत्यश्री-A मणोरहेणिमिणा ॥११॥ तो सविसेसं तुट्ठा कुवेरदत्ता बहिं विणिम्मेइ । गयणयलमणुलिहंतं किंकिणीजालकयसोहं ॥ १२ ॥ पककथा धर्म संघाचारविधौ जिणवरसुपासअप्पडिमपडिमसमलंकियं अइविसालं। उत्ताणनयणघणपिच्छणिज्जतियमेहलाकलियं ॥१३ वरसन्चरयणमइयं मुमेरु॥३८७॥ नामंकियं महाभं । तं द? विम्हियमणो स मुणी वंदइ तहिं देवे ॥१४॥ तं धूभरयणमभुयभूयं दद्रुण मिच्छदिट्ठीवि । तइया हरिसुक्करिसा जाया जिणसासणे भत्ता ॥१५॥ इय तंमि धूभरयणे सुपासजिणकालसंभवंमि सया। सुरकिजमाणपिक्खणखणंमि | सुबह गओ कालो ।। १६ ॥ इत्थंतरंमि खवणो सुदंसणो नाम उग्गतवचरणो विहरइ वसुहावलए महुराखवगुत्ति सुपसिद्धो ॥१७॥ भवणे कुवेरदत्ताइ संठिओ सो कयाइ चउमासे । आयारमाइनिरओ दुकरतवचरणकिसियंगो ॥१८॥ तत्तिव्यतवाकंपिय| हियया सा देवया भणइ मुमुणिं!। मह कहसु किंपि कजं जेणं तं लहु पसाहेमि ॥ १९।। मुणिराह अणुचियन्न किं मह कज्ज असंजईइ तए ?। साऽऽह मए तुह कज्जं असंजईइवि धुवं होही॥२०॥ इय भणिउं अणुचियवयणसवणउप्पन्नमन्नुविवसमणा । देवी | गया सटाणं मुणीवि अन्नत्थ विहरित्था ॥२१॥ अह तत्थ निवसहाए धूभकए सेयबुद्धभिक्खूणं । जाओ महं विवाओ छम्मासे जाव नहु छिन्नो ॥२२॥ संघेण तो भणियं को छित्तुमलं विवायमेयं तु । हुं हुं मथुराखवगो तत्थ इमो झत्ति आहूओ।।२३।। तेण नवेगाकंपियहियया पत्ता कुवेदत्ताऽऽह । किं ते करेमि की स भणइ तं कन्जमाह इमा॥२४॥ किं तुह असंजईएऽवि इण्हि मए नणु पओयणं जायं । तो अणुताबा साहू से मिच्गदुकडं देइ ॥२५॥ सा भणइ खवगपुंगव ! सेयपडागाइदंसणा धूभो । गोसे नहा | जइम्स जह जिणइ इमो निययसंघो ॥ २६ ॥ इइ देवयाइ वयणं सोउं खवगो कहेइ संघस्स । संघोवि गंतु साहइ एवं रन्नोजह | 14॥३८७॥ ComIMANISHITAININDI muTREATuntunami anima

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