Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
श्रीदे० चेत्य० श्री.
धर्म० संघा
चारविधौ
1180311
ता सच्चवाइणो राइणुति दिजह इमीर वाणीए । सलिलंजली तह जए आससिसूरं भमउ अजसो ॥ २६ ॥ पयलं जाउ नयकहा कलुमउ कलिकालकलिलमखिलजणं । उत्तमजहन्नमज्झिममग्गोऽचि समत्तणं लहउ ||२७|| ता किं बहुणा मह जीविएण दीहेण नयविहीणं ९ । वरमिहि चिय मरणं पच्छावि अवस्समरियव्वे ||२८|| इय निच्छिऊण राया मंतीण कहेइ नियममिप्पायं । तेऽविहु विसायविहुरा एवं विश्वविउमाढत्ता || २९ || देव ! न जुअइ कहमत्रि चिंतिउमवि अप्पणो अहियभावो । जं अप्पणाऽमुणा खलु वायव्वा मेइणी सयला | ३० ।। किंच - अतिवयणो सिट्टी सुद्धों दिव्वेण उयह सिठ्ठिसुओ । ता अस्थि जलणथंमिणी कावि सची धुवमिमस्स ॥ ३१ ॥ दिवस्स देवयाओ उवसंनिहियाओ कयाइ नहु हुआ । इत्तुच्चिय भणियमिणं दिवस्स गई अहो दिवा ॥ ३२ ॥ तासामि ! इमस्स पुणो विसिट्ठतरमंतवाइपञ्चक्खं । दिव्वं दाउं जुअह इय जाव भांति मंतिवरा ||३३|| ता विन्नवेइ वित्ती पहु ! दंसणउत्सुओ वहिं अस्थि । सिद्धबहुमंततं तो जोगिवरो कुसलसिद्धित्ति ॥ ६४ ॥ रन्नोऽणुन्नाए वेत्तिणा तहिं आणियस्स तस्म लहुं । विहिओचियस्स कहिओ मंतीहिं फालवतो ||३५|| सो चिंतिय भणइ तयं फालं गाहेह मज्झ पच्चक्खं । मुणिहह सच्चम| सच्चपि बेंति मंतीवि एवंति || ३६ || तेडाविय मंतीहिं सिरिगुत्तो पभणिओ विइयदिवसे । जइ रे सुद्धो सच्चं पुणरवि गिव्हेसु तो फालं ||३७|| गहिउं इमो पयट्टो अह चउदिसि तस्स अक्खए खिव । परविजाविच्छेयगमंतेणऽभिमंतिउं जोगी ||३८|| तम्माहप्पेण इमस्स विगलिए सव्वहावि मंतबले । फालफुलिंगुन्न जलणजालिया पाणिणो दडा ||३९|| खुट्टो खुट्ठोत्ति जणेण सहरिसं | पाडिया य से ताला । तुचरसुत्रणीओ मंतीहिं निवस्स सिट्ठिसुओ ||४०|| रन्ना भणिओ रे रे जहट्टियं कहसु पुब्ववुर्त्ततं । अन्नह मरेसि नूणं भयमीओ भणइ तो एसो ॥४१॥ सामिय ! पुव्वाहियजलणथंभमंतेण दिव्वथंभो मे । आसि कओ संपइ पुण कत्तो
श्रीश्रेष्ठि
कथा
॥४०३॥

Page Navigation
1 ... 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490