Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 448
________________ श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥४२० ॥ पहिपसारण अंगुढमिलणे अभितरा उद्धी १० ||४|| पाउणई संजईवित्र ११ पुरओ खलिणन्व धरइ स्यहरणं १२ । चलचित्तवामसोवित्र चरखं विकखिवइ दिसिनिदिसिं १३ ॥ ५ ॥ छप्पइयमया पट्ट कुणः कविद्धं व१४ कंपइ य सीसं जग हिउन्न १५ सूयव्य हूय छिंदवाईसु १६ ||६|| अंगुलिभमुहे चालइ आलावगगणणजोगठवणत्थं १७ । बुडबुड्इ अहव र १८ वानरोविव चलह ओढे १९ ॥ इह लंबुत्तर १ थण २ संजइचि दोसा न हुंति समणीणं । लंबुचर १ थण २ संजइ ३ बहू य ४ दासा न सड़ीणो ॥ ८ ॥ खलिणकविदुगं पुण अगीयसेाइयाण संभवइ । संभवइ गिहत्थाणवि कयाइ एगत्तभावंमि ॥ ९ ॥ इह देवदसउरपुरे दो मित्ता रामनागदत्तमिहा । हुत्था सयावि दुत्या अमुद्ददारिद्दविहगदुमा ॥ १ ॥ कयकट्टपाणवित्ती कडाण कए कयावि ते पत्ता । सिवदेहे इव ससिवे सगुहे सेलंघसेलंमि ||२|| अज्झीणझाणलीणं थिमियं निव्वायजलनिहिजलं व । काउरसग्गेण ठियं मंदरसिहरं व निकंपं ॥ ३ ॥ पावरयपसरहरणे महाबलंपिव महाबलं नाम । नामियअंतरसत्तुं तत्थ नियच्छंति मुणिपवरं ॥ ४ ॥ जा खणमेगं ते कोउगेण उद्धद्विया नियंति वयं । तावच्चिय कुहराओ घणकसिणो निग्गओ भुयगो ॥५ ॥ सो भमिय तुरिय तुरियं इओ ओ किंपि भक्खमलहंतो । गुरुकोवो तं साहुं दसिय पविट्ठो सवम्मीए ॥ ६ ॥ सो तहवि मुणिनरिंदो | तेण विसेणं मणपि नकंतो। नय झाणाओ चलिओ तो गाढं विम्हिया एए ॥ ७ ॥ चिंतंति अहो एस गुणि अणप्यनाहप्पभवणमम्हेहिं । दिट्ठो दोगचहरो पुनेहिं कप्परुक्लुन् ||८|| पारियकाउस्सग्गो जा भणिओ तेहिं मुणी कहसु भगवं । तया निचलदिट्ठी hi अवस्था मे ? ||९|| एह अवस्थाए न तु तुब्भं भूयगाइणोऽवि पहवंति । इय अम्ह दिट्ठपुत्रं तो वजरए इमं साहू ॥ १० ॥ काउस्सग्गावस्था भद्दे ! भद्दाण कारिणी सा उ । सिओसिआइमेएहिं पेगहा बनिया समए ॥। ११ ॥ उसिओ १ उसिओ २ नागदरा. रामकथा ||४२०||

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