Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संधा
चारविधौ
॥४१९ ॥
प्याओ || ७९ || सुमहवरमंतिकइव इसामंतजुओ महाविभूईए । पडिवजइ पव्वजं ससिप्पहाय रियपयमूले ॥ ८० ॥ नरसुंदररायरिसी सामने पक्षमागमं गुणइ । आगमपुरस्सरं चिय करेइ सयलाउ किरियाओं ॥८१॥ आगमविहिणा बहुआगमाण भत्तीह स बहु तो आगाहसाविक विऊन संगंमि गुरुहरियो ॥ ८२ ॥ कमसो गुरुप्साया सथलागमजलहिपारगो जाओ । गुरुणा गुणगणकलिओति जाणिदं नियपए ठविओ ॥ ८३ ॥ भवियाण उग्गग्गहविणिग्गहं निययययणमंतेहिं । कुञ्वंतो सो भयवं सुहरं हाइ विहरित्था ॥ ८४॥ निष्फाइऊण सीसे बरसीसं नियपमि ठविऊण अंते काउ असणं पत्तो सव्वसिद्धमि ॥ ८५ ॥ वो चविय विदेहे निवपुतो होउं दुहावि दढधम्मो । नरसुंदरनिवजीवो घुयकम्मो पाविधी मुक्खं ॥ ८६ ॥ श्रुत्वेति वृत्तं नरसुंदरस्य, सदागमाराधनसुंदरस्य । साकारशुद्धौ जिनवंदनाय, साकारसज्ज्ञानकृते यतध्वम् ||८७॥ इति नरसुंदरनरेश्वरदृष्टांतः ॥ प्रकटितं 'सोलस आगार' चि एकोनविंशं द्वारं, सांप्रतं 'गुणवीसदोस' चि विंशतितमं द्वारं प्रादुष्कुर्वन्नाह -
घोडग १ लया य २ खंभे कुडेश्माले य ४ सयरि ५ वहु ६ नियले ७ ।
लंबुत्तर८ घण९ उद्धी १० संजइ११ खलिणे य१२ वायस१३ कविट्ठे१४ ॥ ४५ ॥
| सीसोकंपि८१५ ई१६ अंगुलिभमुहाइ१७ वारुणी१८ पेहा १९ । एगुणवीस दोसा काउस्सग्गंमि वज्जिज्जा ॥ ४६ ॥ एतदर्थः- आसुत्र कुणइ विसमं पय१ मनिलाहयलयव्त्र कंपेइ २ । थंभे कुड्डे अवथंभत्ति३ माले य निहइ सिरं४ || १ || अबसणसवारिव्व करे करइ पुरो- कुलबहुव्त्र नमइ सिरं ६ | वित्थारइ मेलइ वा दुन्निवि पाए नियलिउन्च ७ ||२|| लंबुत्तरं च हवई जाणु अहो नाहिउवार वा पट्टे८ । पढेण छायइ थणे मनाइरक्खट्ट व अनाया९ || ३ || बाहिरउद्धी मेलइ पण्हीउ पसारई पुरो पाए ।
कायोत्सर्गदोषाः
॥ ४१९ ॥

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