Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 454
________________ शशिनृप कथा श्रीदे सो जिणसमए कुसलो आवस्सयमाइनिचकिचरओ। बाहिरवित्तीइ चिय रजं रटुं च चिंतेइ ॥२५॥ सिरिकंता से कंता ओरोहगचैत्य श्री | याइ तीइ कइयावि । जिणसमए कुसलाए निम्मलसुइसीलसोयाए ॥२६|| जलसोयकहणपवणा एगा पन्चाइया जिया वाए। दासीहि धर्म संघाचारविधौ घH निच्छूटा ओरोहा सा तओ रुहा ॥२७॥ लहु चित्तपट्टियाए दीसे स्वं लिहेवि साइसयं । वाणारसीइ पत्ता धम्ममइनिवस्स पासंमि ॥२८॥ दंसेइ चित्तपष्टिं सो तं रूवं निएवि पुच्छेइ । जियमयणरिणिरूवं नु कीइ रूवं इमं ? भद्दे ! ॥२९॥ सा जंपइ उदिओद॥४२६॥ यनरिदकताइ पुरिमतालपुरे। सिरिकताए रूवं लेसुद्देसेण मे लिहियं ।.३०॥ अह राया थीलोलो सिरिकंतं मग्गए सदएण । उदिओदओ न वियरइ धम्मरुई फरियगुरुकोवो ।। ३१ ।। चउरंगबलसमेओ तं नयरं वेढिउं समंतेण । आवासिओ बहिं तो नितइ उदिओदओ एवं ॥३२॥ अहह सउन्ना केवि हु गिण्हंति वयं चएवि रजंपि। अन्ने तबिवरीयं कुणंति एमुब ही मोहो ॥३३॥ कुप्पहपयदृचित्ता चिंतियमत्थं कयावि न लहंति । एयपि इमो न मुणइ हहा सया कामगहगहिओ ॥ ३४ ॥ अचंतधामबज्ोण जइविय अणुचियमिणं कयं इपिणा । मुणियतत्तस्स तहविहु नहु मह कप्पइ पडिकरेउं ॥३५॥ बहुमत्तसंघसंघायणाण संपाइयाण | कजाणं । फलमवि तप्पडिरवं भावि धुर्व वा कहि ते हि ॥३६॥ सो अत्थो तं जीयं ते भोगा सो य प्रयणसंबंधो।सा कित्ती तं खलु पोरिसंपि तं हुञ्ज रजंपि ॥ ३७ ॥ जं धम्मम्म विरुद्धं न हो। कइयावि कहवि कत्थविय। तब्धिवरीयत्ते पुण तल्लाभोऽविहु अलाभुति ॥ ३८ ॥ इय निच्छिऊण परिणामियाइ संमं मईइ स महप्पा । तड्डमराभिभवत्थं काउस्सग्गं एवजेर ॥३९॥ तस्यत्तरंजियमणो वेसमणो जलहलंताहरणो । पच्चक्खीहोउ खणेण आह भो रायसद्द्ल 11४०|| पारेसु काउसग्गं आदेसं देसु जेण ( तुह हा निहणेमि सबलमेयं रसायले ला खिलेमि लहुं ॥४१॥ वो पारिय उस्सग्गं निाई कारुननीरनीरनिही । धम्मजुयं वयणमिणं ARDAMrunmamiमान amanainmenPintum ॥४२६॥

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