Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 469
________________ श्रीदे इय थोउ सुरे विरए कंतिसिरी कहइ पहु! कहं अहयं । अहुणा नहु वयउचियत्ति ? तो गुरू भणइ सुण भद्दे ! ॥७०|| सोवकम- कान्तिचैत्यश्री निरुवकममेया कम्मं दुहा इहं तत्थ । परिणामवसेण भवे सोवक्कमकंमुणो नासो ॥७१|निरुवकम्मं तु कम्म जिज्झइजीवाण वेइयं श्रीकथा धर्म० संघाचेव। दुक्रतवचरणेणं निकाइयत्ता जो भणियं ॥७२॥"सब्बासि पयडीण परिणामवसादुवकमो भणिो । पायमनिकाइयाणं तवसा । चारविधौ | उ निकाइयाणपि ।।७३॥" तथा "खलु भो कडाणं कम्माणं पुब्बि दुचिन्नाणं दुप्परिकंताणं वेइत्ता मुक्खो, नत्थि अवेइत्ता, तवसा वा|JI ॥४४॥ | झोसइत्त"ति । तुमए पुण कम्ममिणं विहियं सोवक्कम तो गमिही। मज्झिमवयंमि चिइवंदणाइसुकयाणुमायण ॥ ७४ । भणियं च-पुन्वभव विहियजहविहिचिइवंदणमाइसुकयउप्पन्न । मुहभोगफलं पुत्रं उदइस्सई तुह असामन्नं ७६।। ततो पइणो इट्ठा पहूयरसुहमायणं बहुअवच्चा । होहिसि. अवच्चसहिया य संमया पउरलोयस्स ।।७।। इय सोउ सहा सयला सहलं सह लायसंजया धम्म । गहिय सघिसेसं चिइवंदणाइरम्मं गया सगिहं ॥७८|| कंतिसिरीविहु गहिउं सगवेलाचेइवंदणासहि। गिहिधम्म सा उजुया गया मिहं विजयसिद्धिस्स ॥७९. डिंडीरपिंडपंडुरगुरुजसभरपंडुरीकयतिलोओ। भयवंतु पुंडरीओ काउं बहुलोयउवयारं ॥४०॥ बहुसमणकोडिजुत्तो पचो विमलायलंमि अयलपयं । मासपरिचत्तभत्तो पत्तो पुनिमदिणे चित्ते ।। ८१|| निव्वाणगमणमहिमा हिहिं सुरासुरेहिं तस्स कया। पुंडरियसिद्धिकाला सो भन्नइ पुंडरीयगिरी ॥८२॥ अह भरहचकिणा पढमधम्मचकिस्स पुंडरीयस्स । पडिमाइ अलंकरियं कारवियं पवरजिणभवणं ॥ ८३ ॥ पढमश्रिणपढमगणहरसिद्धीइ पवित्तियं तयं जायं । अवसप्पिणीह मरहे तित्थं तित्थाण पढमति ॥८४॥ कंतिसिरीवि तिसंझं पूयंती जिणवरं उभयसंझं । आवस्सयंमि निरया सुइरं पालेवि गिहिधम्मं ।। ८५॥ सिरिधम्मघोसमरिस्स चरणमूलंमि गहियपन्चजा । सगवारं चिइबंदणकरणमणा विजियकरणमणा ॥८६॥ उप्पन्नविमलनाणा सार- ॥४४॥ WITHINTURISTIA A waalaam

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