Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 466
________________ कान्तिश्रीकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥४३८॥ SAININDUPATTINARITALIKA सुपओसा ॥२०॥ कइया उ मयणअमरिसतवियाए तीई तह वसीकरणं । पइणो कयं जहा सइ स सन्चहा तव्वसो जाओ ॥२१॥ परिहरिया मितसिरी डज्झिज्जइ तचअंगवंगमणा। चंदसिरी तप्पच्चयमुग्गं दोहग्गमज्जेह ॥ २२ ॥ चिइवंदणपरिणामा मरि कंतिमइ तुह सुया जाया। कंतिसिरी नयरे विजयवद्धणे विजयसिद्विगिहे ॥२३॥ संपइ इमीइ उइयं कंम भोगंतरायजणियं तं । जेण | पई दिट्ठाइवि रूसइ से किंतु पुट्ठाए?॥२४॥ एवं दुहियं दुहियं निएविएवं तुमपि दुहिया ता ।सो विरलो कोऽवि जणो दुहियं जणिऊण जोसुहिओ ॥२५॥ पतः-"जातेति चिंता महतीति शोकः, कस्मै प्रदेयेति महान् विकल्पः। दत्ता सुग्वं स्थास्यति वा नवेति,कन्यापितृत्वं खलु नाम कष्टम् ॥२६॥ किंच-निरवच्चा दहइ मणं विणट्टसीलावि देइ दुक्खाई। दोहग्गिणीवि दूमह दुहिया पियराण हिययाइं॥२७॥ अज पुण दुसहदोहग्गउग्गदुहमिया इमा इत्थ । नियजीवियनिरविक्खा गया अलक्खा मरणकंखा ॥२८॥ दरदिनकंठपासा एसा अणुमम्गागयाइ तए । छिंदित्तु तयं पास करे करे इहाणीया ॥२९॥ इय सोउं कंतिसिरी नंपइ संपइ पसीय मह भयवं! । दोहग्गदरिदहरं चरित्तचिंतामणिं देहि ॥३०॥ सा भणिया मुणिपहुणा अहुणा भद्दे ! नतं चरणउचिया। किंतु कुण संमरंमं चिइवंदणमाइगिहिधम्मं ॥३१॥ सा आह नाह ! कजं न मज्झ अन्नण देहि पवज्जं : अज्जेव जेण सज्जो सज्जियऽणसणा मरामि अहं ॥३२॥ अह वाणवंतरसुरो कहेइ एगो अहो इह भवंमि । सचाण ममंताणं जायइ सरिसेण || सह जोगो ॥३३।। जमिमाविहु सच्छंदा असच्छतुच्छासया मह सरिच्छ। न पियइ अमयसमाणं गुरुवर समतुहनिहापं ॥३४॥ कतिसिरी जणणीए कंतिमईए तओ कहं भय । एसो इमीइ सरिसोति पुच्छिए कहइ गणिनाहो ॥३२॥ संस्थउरनामगामे आसी कुलपुत्तओ घणो नाम । उच्छिन्नजणणिजणओ निरंगणो निद्धणो धणियं ॥३६॥ सो कइया मुयधम्मो आगंतुं दुक्खगम्भवेरग्गे। ॥४३८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490