Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 446
________________ DAV श्रीदे पासे। पडिवन्जिय पव्वजं सुगईए भायणं जाओ ॥६२ ॥ आगमहीलामूलं अज्जुणओ अजिउं असुहकमं । कालंमि काउ कालं नरसुन्दरचैत्यश्री- छगलो तत्थेव उववन्नो ॥६३ ।। अनदिणे तणएणं मुल्लेभ किणिय पियरकजंमि। गहिओ दुहेण हणिओ कुंभारघरे खरो जाओ) कथा पर्म संघा HIN६४ ॥ सीउण्हखुप्पिवासावासाइसुतिक्खदुक्खरिंछोलि । सो सहमाणो सययं बहुकालं दुत्थिओ गमइ ॥६५॥ कइयावि गुरुचारविवौ PI भरेणं पडिओ भग्गेसु सयलभंडेसु । कुविएण कुलालेणं लउडेण हओ गो निहणं ।। ६६ ।। विट्ठाभक्खणनिरओ तो गड्डापूररो ॥४१८॥ ॥ समुप्पनो। आहेडयसुणएहि विणासिओ करहओ जाओ ॥६७। गुरुभारवहणखिन्नो नइदुत्तडिपडणदलियसव्वंगो। अइविरस मारसंतो दुस्सहपीडाइ मरिऊणं ॥६८॥ गुन्धरगामे जाओ गोधणवणियस्स नंदणो मूओ। अविवेयजणेहि मिसं विनडिजंतो वहुपपारं ॥६९॥ नियजीवियनिम्बिनो पडित्तु कूवंमि मरणमणुपत्तो। नंदिग्गामे जाओ ठक्कुरगेहमि दासिसुओ ॥ ७० ॥ कइयावि मञ्जमत्तो परमप्पयं तदुभयं च अमुर्णतो । पुणरुत्तं अकोसइ असरिसवपणेहिं नियसामि ॥७१॥ कुविएण टकुरेणं जीहा छिंदा| विया अहह तस्स । पीडाभरबिदुरंगो विरसंतो कंनकडुआई ॥ ७२ ॥ केवलकरणाठाणं तं भूमियले लुटतयं दद्टुं । अइसयनाणी 10 साहू महुरगिराए इमं भणइ ।। ७३॥ किं भद्द! कुणसि एवं खेयं अइदुमहदुहमरकंतो। जम्हा तइचिय कयं जं कम्मं तस्स फल मेयं ॥७४॥ तथाहि-अज्जुणजम्मविणिम्मियागमनिंदाफलेण जाओ सि। छयलो खरो वराहो करदो तह सूयरो दासो ॥ ७५ ।। गाय सोउ सरिय जाई सो भतीए नमेइ मृणिपबरं । पच्छायावपरिगओ अप्पाणं मुबहु निंदतो ।। ७३ परिऊणं सो जाओ तुम मिह र सुंदरो महीनाहो। पुन्वभवम्भासाओ नाहियदाए य तुह रंगो ॥७७॥ इय सुणि धुव्वभवे मरिउनिब्वेयपरिमओ राया। पुसमरसेणे रजभर झति संठवि॥ ७८ । आगमहीलामूलरम पावपंजरस नियनहे। कारवि चेइएमु आगमपुस्धसु61४१८॥

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