Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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नरसुन्दर
कथा
श्रीदे० चैत्यश्री धर्म संघा- चारविधौ | ॥४१७॥
तुमंपि निव! कुलकमागर्य कुग्गहं अमुचंतो। मा पुब्धिपिव इलिपि दुस्सहदुहमारमजेसु ।। ४५।। आह नरिंदो कह पहु! दुस्सहदुइभरमहं सहियपुवो । भणइ गुरू निव! निमुणसु नवगामो अस्थि वरगामो॥४६॥ तत्थासी कुलपुत्तोदढमिछत्तो अधम्मकयचित्तो । कयकुग्गहपंकजलनिमजणो अज्जुणो नाम ॥४७॥ विनायसत्ततत्तो दढसंमत्तो जिणिंदमुणिभत्तो। नियकुम्गहपरिचतो सुहंकरो नाम से मित्तो ॥४८॥ पत्ता सुहंमगुरुणो बहुआगमसंगया कयावि तर्हि । मित्तेण पेरिओ अज्जुणोऽवि पासंगओ तेर्सि ॥४९॥ अह नमिय गुरुपयजुर्य सुहंकरो अइसुहकर संमं । उवविसइ उचियठाणे इय धम्म वागरइ सूरी॥५०॥ "पडिपुनपुत्रिमाचंदसुमिणदंसणमिवेह अइदुलहं । भविया! लहिय नरभवं करेह धम्म निरइयारं ॥५१॥ पवणुब्ब जलंयपडलं सुहुयहुयासच बंधणस-1 मुहं । जं सुकयभरं भंजइ धम्मे थेवोऽवि अहयारो ॥५२॥ ससउव्व ससि लोभुव्व गुणगणं मसिलवुव सियसं । थेवोऽवि अईयारो धम्म रम्मपि सेइ ॥५॥ थेवोऽपि निरइयारो धम्मो सिग्घं जणेद सिद्धिसुहं । सुबहवि साइयारोधम्मो नहु इफलजणगो॥५४॥ इन्तुच्चिय जिणसमए आमारा तत्थ तत्य निदिहा । अइयारं परिहरि सुद्धं धम्मं च पालेउं ।। ५५॥ यदुक्तं-'क्यभंगे गुरुदोमो थेवस्सवि पालणा गुणकरी य । गुरुलाघवं च नेयं धममि अओ य आगारा ॥५६॥" तथाहि-अन्नत्थुयाइ सोलस आगारा चेइबंदणामुत्ते । रायामिओगपमुहा आगारा छच्च संमत्ते ॥५७॥ णाभोगाइदुवीसं पञ्चक्खाणे तहा य एएहिं । चिइवंदणाइधम्मो सुह|गियो होइ सुइकिचो ॥१८॥"गुरुवयणं तं इच्छियपडिच्छिउँ नमिय सरिणो पत्तो । सगिहे सुहकरो तो अज्जुणएणं इमं वुत्तो | ॥५९॥ आगारेहि किमेहिं ? जइ किर चिइवंदणाइकिच्चेसु । पुरओ पणिदिजीवा वयंति तो हुज को दोसो १॥६०॥ अह आगममंमिएए वुत्ताईसयाममसरूवं । धुत्तेहिं कयाकवाकालेणय आयमे जाया॥ ६१॥वोअज्जुण्यं अजुग्यं नाऊण मुहको सुगुरु
॥४१७॥

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