Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 433
________________ श्रीदत्तचरित्रम् श्रीदे जोगविरहनिमित्तमुत्तं जिणेहिं सामइयं । दमणमृद्धिनिमित्त चउबीमथओ विणिद्दिटो ॥६०॥ गुणवंताण गुरुणं पडिवत्तिनिमित्त चैत्यश्री मित्थ वंदणयं । अइयारविसुद्धिनिमित्तमाहियं फुडं पडिकमणं ॥ ६१ ।। चारित्तनाणदंसणसुद्धिनिमित्तं तु निययउस्सग्गा। पावधर्म० संघाचारविधौ | पखवणनिमित्तं कीरइ इरियाइउस्सग्गो ॥६२॥ वंदणमाइनिमित्तं सुदिद्विअमराण सुमरणनिमिचं । चिइवंदणउस्सग्गा कीरंतऽनेवि | बहुहेऊ ॥६॥ तव्हाछेयनिमित्तं पञ्चक्खाणंति सोउ मुणिवयणं । वरुणो संवेगगओ तकरणेऽमिग्गहं लेह ॥६॥ कइयावि पमा॥४०५॥ D| इल्लो माइल्लो बहुयलोयपचक्ख । आवस्सयं विसुद्धं करेइ विवरीयमिहरा उ ॥६५॥ चिइवंदणाइ किचं सव्वंपि समायमायरिय | वरुणो। पजंतेऽवि हु तदकयपडियारो वंतरो जाओ ॥६६॥ तो चविय तेण मायादोसेणं कीर भद्द! तं जाओ । इय सोउसुओ सुमरियपुव्वभवो विनवइ साहुं ॥६७। भयवं! किमिण्हि कीरइ ? कीरोऽहं तुम्ह पायसेवाए। दरमजोग्गो नय सम्वविरइरयणस्स जुग्गम्हि ॥६८॥ नय तिरियजीवियव्वे रमइ मई मज्झ नेव पहु! सको। इमिणा तिरिदेहेणं अकलंको काउ जिणधम्मो ॥६९॥ ता पसिय कहसु पहु! मज्झ किं तित्थं सुप्पस्सत्थमञ्चत्थं । उज्झामि जत्थ जीयं ? भणइ मुणी भद्द! विमलगिरी ॥७०॥ तत्थ पदम-| चक्किस्स नंदणो पढमजिणवरविणेओ। सिद्धो पुंडरियरिसी सहिओ मुणिकोडिपणगेण ॥ ७१ ॥ नमिविनमिखेचरवरा जत्थ य सिद्धा दुकोडिमुणिजुत्ता । जत्थबाउवि सिद्धा असंखया समणकोडीओ।।७२।। जो रिसहाइजिणाहिवनिम्मलकमकमलजुअलफ रिसेणं । सययं पवित्तसिहरो सो विमलगिरी महातित्थं ॥७३॥ (प्रत्यंतरे-अपरं च-सुयधम्मकित्तियं तं तित्थं देविंदवंदियं पवरं । पाहुडए विजाणं देसियमिगवीसनामंजं ॥१॥ विमलगिरि१ मुत्तिनिलओ २ सितुञ्जो ३ सिद्धखित्तु ४ पुंडरिओ ५। सिरिसिद्धसेहरो६ सिद्धपबओ७ सिद्धरात्रो यस ॥२॥ बाहुबली९ मरुदेवो१० भगीरहो११ सहसपत्तु१२ सयवतो १३। कूडसयठुत्तरओ MinimalitimInHINDImhathum ॥४०५॥

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