Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 439
________________ वैत्यश्रीन श्रीदे धर्म संघाचारविधी ॥४११॥ हिंमि अपारे दुलई चिंतामणिब मणुयत्। तत्थवि अणत्थहरणं दुलह समवरस्यणं ॥११॥ कहकहवि तंपि पाविय तमूलं मदर्शन इवंदणं विहिणा। सद्धामेहाधिडधारणाइकलियं सया कुणह ॥ १२॥ अह समए मंतिनिया पुच्छति मुणिंद! कहसु किं पुब्धि।। नृपकथा अम्हहिं कयं पावं? जेणमिणं बसणमणुपत्तं ॥१३॥ भणइ मुणी कोसंबीनयरीए आसि धम्मसत्याहो । सययं सद्धाइजुओ जिणपूर्वणवंदणुज्जुचो ॥ १४ ॥ स कयावि सरलहियो कुग्गहगहिलेण पयइकुडिलेण । अज्जुणगसहएणं इय भणिो दुब्बियडेणं ॥१५॥ भो बंधु ! एस धम्मो गझो सुपरिचिऊण पणियं व । तं पुण विचारविमुहो वट्टसि गरिपवाहेण ॥ १६ ॥ तो भणइ सत्ववाहो धम्मवियारं कहेमू मे मद्द! । अज्जुनओ अज्जुणोविव जडपयडी पयंपेह ॥१७॥ धम्म! इमो जिणघम्मो छजीवनिकायरक्षणपहाणो। दव्यथए पुण दीसइ छजीवबहो फुडो चेव ॥१८॥ ता जिणवराण पूया फलजलकुसुमाइएहि नहु जुत्ता। किं | तु चिइवंदणाइसु सुदिद्विदेवा सरिंअंति ॥१९॥ धम्मो भणेइ नाहं वियारमेयं मुणेमि ता गुरुणो। पुच्छेमो ते तंपि य जं भणिहि तयं अहं काहं ॥२०॥ एवंति तेण वृत्ते दोऽवि गया धम्मघोसगुरुपासे। निययं परूवणं अज्जुणोवि साहेइ घिट्टमणो ॥२१॥ तो गुरुणा गुरुकरुणारसजलनिहिणा पयंपिओ एसो। कह भद! जिणमयं अमुणिउंपि एवं परूवेसि ? ॥२२॥ यतः-आरंभपसत्ताणं गिहीण छजीववहअविरयाणं । मवाडविनिवाडिराणं दबथो चेव आलंयो॥२३॥ यदागमः-"अकसिणपश्चगाणं विरयाविरयाण एस खलु जुचो । संसारपयणुकरणे दनथए कूवदिटुंतो ॥ २४ ॥ जिणभवणबिंबठावणजुत्ता कुसुमाइपूर्वणारूवा । दबत्यो विसिट्ठो गिहीण इयरासमत्थाणं ॥ २५ ॥ कुसुमाईवि निसिद्धं जइ थेवोवकमपि मूढ ! तए । ता इयाइकरणं बहुआरंभं सुपडिसिद्धं ॥२६॥ जिणभवणाण अकरणे विवाण अठावणे य तुम्भ मए । तित्युच्छेगाईया हवंति दोसा बहुपयारा ।। २७॥ चेइय- ॥४११॥

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