Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 395
________________ सुमतिकन्याकथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥३६७॥ JPRINTAITHIANATIONSamya पूइय पडिपुत्रविहिए वंदिउँ काउ पणिहाणं ॥७॥ आगम्म नियावासंमि पारणट्ठा इमा समुवविट्ठा । चिंतइ पसन्नचित्ता एवं दारं | पलोयंती ॥ ८॥ जइ इत्थ मज्म गुरुपुन्नपेरिओ कोवि एइ सुमहप्पा । अन्नं धम्ममन्ना ता एवं दाउ पारेमि ॥९॥ इत्तो य गय. ममतो दुचरतवचरणकरणआसतो। मलमइलवत्थगत्तो सयवत्तपवित्तचारित्तो॥१०॥ इरिआए आउत्तो चंदुअलसीलपालणुज्जुत्तो। तस्स दुवारे पत्तो साहू नामेण वरदत्तो ॥११॥ तं दद्छु अहो मह पुनपगरिसो एरिसो मुणी जेण । इह इण्हि आगओ रयणवुट्टिसरिसो दरिदगिहे ॥१२॥ इय मन्नंती उद्विय ससंभमं गहिय थालमणुपिण्ह । भयवं! ममंति मणिरी तं पडिलाभइ पवरसद्धा ।।१३।। तो चित्तवित्तपत्ताण जोगओ तत्थ पंच दिव्याणि । पाउभूयाई इओ गओसठाणं तु स महप्पा ॥१४॥ दट्ठण रयण| बुद्धि समागया रामकेसवा तत्थ । चितंति विम्हियमणा धन्नसपुन्ना इमा कन्ना ॥१५|| जम्माउवि अकलंका दुरुज्झियसयलपावमल| पंका । संमत्ते निस्संका मुहनिजियपुंनिममयंका ॥१६॥ देमो सयंवरं ता इमीइ इय चिंतिउं समाया। विजयद्धनिवासिनिवा समागया झत्ति तेऽवि तहिं ॥१७॥ थंभसयसंनिविट्ठो लीलट्टियसालभंजियवरिट्ठो। अमरमणाणवि रइओ सयंवरामंडवो रहओ ॥१८॥ तो कणयकलसण्हाया बरहरिचंदणविलित्तसव्वंगा। वरवत्थाभरणधरा सिरउवरिं धरियसियछत्ता ॥ १९ ॥ वीइज्जंती सियचा| मराहि करकलियविमलवरमाला । पडिहारदेसियपहा पत्ता सुमईवि तम्मज्झे ॥२०॥ इतश्च-वेरुलियगरुयवानं चामीयरचारुवेइयालंभ। धुव्वंतघयपडागं उज्जोतिं दसदिसागं !! २१ ॥ नयणसयपिच्छणिज्ज आगच्छंतं नहमि रमणिज्ज। पिच्छंति वरविमाणं ते रायाणो अइपमाणं ॥ २२ ॥ तंमज्झे वरमणिरयणजडियसीहासमि उवविढं। एगं देवं नियकतिपंतिउज्जोइयदियंत ॥२३॥ अह सा सुमई ते रामकेसवा भूमिवासवा ते उ । विम्हइयमणा उड़्कयवयणा जाव पिच्छंति ॥२४॥ किणि किणिर IMPAINSiranians CHIS ॥३६७॥

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