Book Title: Chaityavandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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बन्धुदत्त
कधा
श्रीदे० चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३६५॥
| असरिसअमरिसवसमिसिमिसंतजोहजुओ । समणे निवासेउं उवडिओ तलत्ररो जाव ॥११२॥ विहिविहियभावसम्भावसारदकरतवाणुभावेण । ताव समुप्पनअगष्णलद्धिबहुसिद्धिकलिएण ॥११३।। चुब्रिज चकवट्टि उप्पने सिंगनादकजंमि । जइ तं न करेइ मुणी भवे तयाऽणतसंसारी॥११४॥ इय सुयमणुसरमाणेण माणअवमाणतुल्लमणसाऽवि । कुमयगहराहुणा बाहुसाहुणा थंमिआ ते उ ॥११५॥ तं सोउं भयभीओ संतेउरपरियणो निवो तुरियं । गंतूण तत्थ गुरुणो मुणिणो खामेइ पुणरुत्वं ॥११६॥ मणिओ निबो | गुरुहिं तं धन्नो जस्स तुज्झ देसंमि । मुणिणो निप्पच्चूहं कुणंति परलोयहियमेवं ॥११७॥ मा संकेजसु नवर! जइजणकिच्चेण | | जायए असिवं । पुन्चकयअसहमेवं अवरज्झइ सयललोयस्स ॥११८॥ एवंति भणिय राया राहुमुणिं खामए विसेसेण । उत्तमिओ तो तेण तलवरो सपरिवारोऽवि ॥११९॥ तं द? मुणिपभावं तप्पयसंफुसियरेणुनियरेण । तच्छायाऽविय कुमरो रण्णा सबंगमामुट्ठो ॥१२०।। पीऊसपोससित्तुत्व निवसुओ विसवियारपरिमुको । सुत्थो खणेण जाओ राया पुण सावएसु बरो॥१२१।। इत्थंतरंमि अणसणपवनसाहू महिडियजणेण । कीरंतमहामहिमो मरि पत्तो तइयकप्पे ॥१२२ ।। विहिया परमा जिणपवयणउन्नई रायपमुहलोएण । तो सूरदेवसिट्ठी नमिय गुरुं विन्नवइ एवं ।। १२३ ।। मुणिनाह ! किहणु बाहूसाहुणो बहुविहाउ लद्धीओ। एवं | विहाउ सुतवे समेऽवि न उणो सुबाहुस्स? ॥१२४॥ आह गुरू एए खलु लद्धिविसेसा हवंति सुतवेण । विहिभावणापरेणं न कयावि | जहातहकएण ॥ १२५ ।। विहिभावविगलयाए कट्टाणुट्टाणकारिणोऽवि मिसं। सिढि ! इमा लद्धीओ सुबाहुमुणिणो कह हवंतु ? ॥१२६॥ इय मुणिय सूरदेवो संवेगगओ गहेइ पब्वजं । वसुमित्तगुरुसमीवे विहिभावपरो य कुणइ तवं ॥१२७। कमतो अहिन्जियसुओ विहरंतो संपयं इहं पत्तो । उप्पन्नविमलनाणोधम्म साहेइ सो उ अहं ॥१२८॥ इममायन्निय जणयं पुच्छेउं केवलिस्स पासंमि।
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॥३६५॥
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