Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ १४ ]
( ११९० ) गुडूच्यादि काथः
( हा० सं० । ३ स्था. अ. १४ ) गुडूची नागरं भार्गी व्याघ्रीकाथः कणायुतः । कासश्वासौ जयत्याशु गुडेन सैन्धवेन च ॥
भारत- भैषज्य रत्नाकरः ।
गिलोय; सोंठ, भारंगी और कटहली के काथ में पीपलका चूर्ण और गुड़ अथवा सेन्धा नमक मिलाकर सेवन करनेसे खाँसी और श्वास अत्यन्त शीघ्र नष्ट होते हैं ।
( प्र० वि० पीपलका चूर्ण १ माशा गुड़ १ तो० और सेन्धानमक १ से ४ माशे तक आनश्यकतानुसार मिलाना चाहिए । ) (११९१) गुडूच्यादि काथः (वृं. मा. । ज्वरा.) गुडुचीचित्रवित्वान्दरक्तचन्दनवालकैः । कलिङ्गकैः समायुक्तैर्ज्वरातीसारशोफनुत् ||
गिलोय, चीता, बेलगिरी, नागरमोथा, लाल चन्दन ने बाला और इन्द्रजौका काथ सेवन करने से ज्वरातिसार और शोफ (सृजन) का नाश हो जाता है। (१९९२) गुडूच्यादि काध: (यो. चि. । अ. ४) गुडूचीधान्यमुस्ताभिश्चन्दनोशीर नागरैः । कृतं कथं पिबेत्क्षौद्रसितायुक्तं ज्वरातुरः ।।
fगलोय, धनिया, नागरमोथा, लाल चन्दन, खस और सोंठके क्काथमें शहद और मिश्री मिलाकर पीने से ज्वर न होता है (प्र. वि. शहद वात पित्त और कफज्वर में यथाक्रम काथका सोलहवाँ, आठवा, और चौथा भाग, और मिश्री क्रमशः चौथा, आठवाँ और सोलहवाँ भाग मिलानी चाहिए | ) (१९९३) गुडूच्यादि काथः
(बृ. यो. चि. अ.पि.चि. )
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[ गकारादि
गुडूचीचित्रकारिष्ट पटोलैः कथितं पिबेत् । क्षौद्रयुक्तं निहन्त्येतच्छर्दि पित्ताम्लसम्भवाम् ॥
गिलोय, चित्रक ( चीता), नीमकी छाल और पटोल पत्रके काथमें शहद डाल कर पीने से अम्लपित्तज छर्दिष्ट होती है । (प्र. वि. शहद का का आठवाँ भाग मिलाना चाहिए ।
(१९९४) गुडूच्यादि काथः (रा.मा. 1 व.) वातज्वरोपशमनाय पिबेद्गुडूची दुस्पर्शनागरघनकथितं कषायम् ॥ TTER शान्तिके लिए गिलोय, जवासा its और नागरमोथेका काथ पीना चाहिए । (१९९५) गुडूच्यादि काथा (चं. से. | मरा. अ.) गुडुची मधुकं द्राक्षा मोरटं दाडिमैस्सह । पाककाले प्रदातव्यं भेषजं गुडसंयुतम् ॥ तेन पार्क व्रजत्याशु न च वायुः प्रकुप्यति ॥
गिलोय, मुलहटी, मुनक्का, ईखकी जड़, और अनार (वृक्ष) की छाल के काथमें गुड़ मिलाकर मसूरिका पकने के समय सेवन कराया जाय तो वह शीघ्र पक जाती है और वायु कुपित नहीं होने पाती । (प्र. विधि - गुड़ १ तो. मिलाना चाहिये ।) (१९९६) गुडूच्यादि काथः (यो. र. । कुष्ठा.) गुडूची त्रिफला दाव काथ उष्णैश्च वारिभिः । त्वग्दोषत्रणशोफघ्नः पीतो मासं सगुग्गुलुः ॥
एक मास पर्यन्त, गिलोय, त्रिफला (हैड, बहेड़ा आमला) और दारूहल्दीका काथ अथवा उष्ण जल के साथ गूगल सेवन करनेसे त्वग्दोष, ar (घा) और सुजनका नाश होता है ।
(प्र. वि. गूगल रोगी अग्नि बलानुसार १ से | ३ माशे तक सेवन कराया जा सक्ता है ।)
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