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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. १ . ५ सूक्ष्मपृथ्वी कायस्वरूपनिरूपणम् तथैव अपर्याप्तकवादरपृथिवीकायिकवदेव पर्याप्तका अपि वादरपृथिवीकायिकै केन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः स्पर्शेन्द्रियमयोगपरिणता एव भवन्ति । एव चउक्कणं भेएणं जाव वणस्सइकाइया' एवं प्रकारेण चतुष्केण भेदेन सुक्ष्म-वादर-पर्याप्तका - पर्याप्तकरूपेण चतुर्विधाः यावत् - अपकायिक- तैजसकायिक- वायुकायिक- वनस्पतिकायिकै केन्द्रिय प्रयोगपरिणताः पुद्गलाः स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति । 'जे अपज्जत्ता वेइंदिय पओगपरिणया ते जिभिदियफासिंदियपओगपरिणया' ये अपर्याप्तकाः द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणनाः पुद्गलाः प्रज्ञप्ताः ते जिह्वेन्द्रिय- स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणता भवन्ति, तथा 'जे पज्जत्ता वेइंदिया एवं चेत्र' ये पर्याप्तकाः द्वीन्द्रियमयोगपरिणताः पुद्गलाः प्रज्ञप्ताः ते एवमेव- द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति ' एवं जात्र चउरिंदिया ' परिणत ही होते हैं । 'एव पज्जत्तगा वि' अपर्याप्तक बादरपृथिवीकायिक की तरहसे ही पर्याप्तक चादर पृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणतपुद्गल भी केवल एक स्पर्शन इन्द्रियमयोगपरिणत ही होते हैं । 'एव चक्कणं भेएणं जाव वणम्सकाइया' इस तरह सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक अपर्याप्तकरूप चार भेदसे चार प्रकारके अपकायिक, तैजसकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियमयोगपरिणत पुद्गल एक केवल स्पर्शन इन्द्रियप्रयोग परिणत ही होते हैं । 'जे अपज्जत्तगा वेई दियपओगपरिणया ते जिभिदिय फासिंदियपओगपरिणया' जो अपर्याप्त बेइन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गल कहे गये हैं, वे जिह्वाइन्द्रिय और स्पर्श नन्द्रियके प्रयोगसे परिणत होते हैं तथा 'जे पज्जत्ता इंदिया एवं चेव' जो पुद्गल पर्याप्त बेइन्द्रिय जीवकी दो इन्द्रियोंके प्रयोगसे परिणत कहे गये हैं वे भी जिह्वा इन्द्रिय और स्पर्श नन्द्रिय
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दोन्द्रियोंके प्रयोग से परिणत होते हैं ' एवं जाव चउरिंदिया ' भ्यर्शेन्द्रियना प्रयोगथी ४ शिशुत होय छे 'एव पज्जत्तगा त्रि' अपर्याप्त महर પૃથ્વીકાયિકની જેમ જ પર્યાપ્તક ખાદર પૃથ્વીકાચિક એકેન્દ્રિય પ્રયાગપરિણુત પુદંગલે પશુ એક માત્ર સ્પેન્શેન્દ્રિય પ્રયાગપરિણત જ હાય છે एव चउकरणं भेएण जात्र वर्णस्स इकाइया' मे प्रभा सूक्ष्म र पर्याप्त भने पर्याप्त यार लेनी અપેક્ષાએ અકાચિક, તેજ કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિય પ્રયાગपरिश्रुत युद्धगयो या मे मात्र स्पेर्शेन्द्रिय प्रयोगपरियुतन होय छे 'जे अपज्जत्तगा वैइंदिय पओगपरिणया ते जिम्भिदियफासिंदियपओगपरिणया' ने पर्याप्त દ્વીન્દ્રિય પ્રયાગપતિ પુદગલા કહ્યાં છે, તે જિહવાઇન્દ્રિય અને સ્પેરો ન્દ્રિયના પ્રયાગથી
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