Book Title: Bhagwati Sutra Part 06
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 735
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. ६ व ७ क्रियास्वरूपनिरूपणम् " " ० ७३५ रिए ?" हे भदन्त ! असुरकुमारः खलु औदारिकशरीरात् परकीयौदारिकशरीरमाश्रित्य कतिक्रियो भवति ? भगवानाह - ' एवं चेव एवं जाव वैमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे' एवं चैत्र नैरयिकत्रदेव असुरकुमारोऽपि यदा परकीयौदारिकशरीरमाश्रित्य कार्य व्यापारयति तदा कदाचित् त्रिक्रियः कदाचित् चतुष्क्रियः कदाचित् पञ्चक्रियो भवति, अक्रियस्तु न भवति तस्यावीतरागत्वेन क्रियाणामवश्यंभावात् एवम् असुरकुमारवदेव यावत् सुपर्णकुमारादि भवनपति एकेन्द्रियविकलेन्द्रियपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्मनुष्यवानव्यन्तर-ज्योतिपिक - वैमानिकोऽपि यदा परकीयौदारिक शरीरमाश्रित्य कार्यं व्यापारपति तदा कदाचित् 'असुरकुमाराण भंते ! ओरालियसरीराओ कह किरिए' हे भदन्त 1 असुरकुमार परकीय औदारिक शरीरका आश्रय करके कितने प्रकार की क्रियाओंवाला होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'एवं जाव वैमाणिए' नवरं मणुम्से जहा जीवे' हे गौतम ! नारक जीवकी तरह ही असुर कुमार भी जब परकीय औदारिक शरीर का आश्रय करता है तब वह कदाचित् तीन क्रियाओंवाला होता है, कदाचित् चार क्रियाओंवाला होता है और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है । यह अक्रिय तो होता नहीं है क्यों कि यह वीतराग नहीं होते हैं अतः अवीतराग होने के कारण इनमें क्रियाओंका होना अवश्यंभावी है । असुरकुमार की तरह ही यावत् सुपर्णकुमार आदि भवनपति देव, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रियतिर्यक्कू, मनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, तथा वैमानिक ये सब भी जब परकीय औदारिक शरीरको आश्रित હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે છે કેअसुरकुमारा णं भंते ! ओरालियस राओ कइ किरिए ?' डे लहन्त असुरकुमार परकीय ઔદારિક શરીના આશ્રય કરીને કેટલી ક્રિયાઓવાળા હાય છે તેના ઉત્તર આપતા अनु ४ - एवं चेत्र एवं जाच वैमाणिए नवरं मणुस्से जहा जीवे ' डे गौतम ! નારક જીવની જેમ અસુરકુમાર પણ જ્યારે પરકીય ઔદારિક શરીરને આશ્રય કરે છે. ત્યારે ત્રણ ક્રિયાઓવાળા પણુ હોય છે, ચાર યિાવાળા પણ હોય છે અને પાંચ ક્રિયાએાવાળા પણ હાય છે. તે કદી પણ અક્રિય (ક્રિયા રહિત) હેતા નથી, કારણકે તે વીતરાગ હાતે નથી અવીતરાગ હાવાને લીધે તેનામા ક્રિયાએ અવશ્ય સદ્ભાવ ડાય છે સુપ કુમાર ययनना लवनयति हेव, गोडेन्द्रिय, विश्लेन्द्रिय, पथेन्द्रियतिर्यथ, मनुष्य, वानव्यन्तर, જ્યાતિષિક તથા ખૈમાનિક દેવનું સ્થન પણ અસુરકુમારના કથન જેવું સમજવું. એટલે કે તે બધાં જીવે પણ જ્યારે પકીય દારિક શરીરના આશ્રય લઇને પાત પોતાની કાયા " !

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