Book Title: Bhagwati Sutra Part 06
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 725
________________ अमेयचन्द्रिका टी. श.८ उ.६ सू.५ क्रियास्वरूपनिरूपणम् ७२५ क्रियाः ? गौतम ! स्यात् त्रिक्रियाः, यावत् स्यात् अक्रियाः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! औदारिकशरीरात् कतिक्रियाः ? एवम् एषोऽपि यथा प्रथमो दण्डक स्तथा भणितव्यो यावत् वैमानिकाः, नवरं मनुष्या यथा जीवाः. जीवाः खलु भदन्त ! औदारिकशरीरेभ्यः कतिक्रियाः ? गौतम ! त्रिक्रिया अपि, चतुभी होता है-इस तरहसे प्रथम दण्डक यहां संपूर्णरूपसे कहना चाहिये। योवत् वैमानिकों में भी ऐसाही कथन करना चाहिये। मनुष्य में सामान्य जीवकी तरह क्रियाओंका कथन जानना चाहिये। (जीवाणं भंते ! ओरोलियसरीराओ कइकिरिया) हे भदन्त ! अनेक जीव औदारिक शरीरके आश्रयसे कितनी क्रियाओंवाले होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सिय तिकिरिया जाव लिय अकिरिया) कदाचित् वे तीनक्रियाओंवाले होते हैं यावत् अक्रियावाले भी होते हैं। (नेरइया णं भंते! ओगलियसरीराओ कइकिरिया) हे भदन्त ! नारक जीव परकीय औदारिक शरीरके आश्रयसे कितनी क्रियाओंवाले होते हैं। ( एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ तहा भाणियन्यो-जाव वेमाणिया-नवरं मणुस्सा जहाँ जीवा ) हे गौतम ! इस विषय में समस्त कथन प्रथम दण्डककी तरहसे जानना चाहिये-वैमानिक देवों तक इस दण्डकलो कहना चाहिये । परन्तु मनुष्यों में जीवोंकी तरहसे क्रियाओंके होनेका और न होनेका कथन जानना चाहिये । (जीवाणं પણ હોય છે. આ પ્રમાણે અહીં પ્રથમ દડકમાં આવેલું સમસ્ત કથન કરવું જોઈએ. વિમાનિકે પર્યન્તના જીમાં પણ એવું જ ન કરવું જોઈએ. મનુષ્યમાં ક્રિયાનું કથન सामान्य अपना ४यन मनुसार समायु. (जीवाणं भते ! ओरालियसरीराओ का किरिया ?) महन्त ! भने 04 मौरिAN२ना माश्रययी टहलियामावा होय छ ? ( गोयमा !) गौतम ! (सिय तिकिरिया जाब सिय अकिरिया) કયારેક તેઓ ત્રણ ક્રિયાઓવાળા, ક્યારેક ચાર કિયાવાળા, કયારેક પાંચ કિયાવાળા અને ४५।२४ लिया हित डाय छ (नेरइयाणं भंते ! ओरालियसरीराओ कइकिरिया ?) હે ભદન્ત! નારક છે પરકીય ઔદારિક શરીરના આશયથી કેટલી ક્રિયાઓવાળાં હોય છે? (एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ तहा भाणियब्वो, जाच वेमाणिया-नवरं मणुस्सा जहा जीवा) गौतम १ मा विषयमा समस्त ४यन पडता ६४४ प्रभाव સમજવું–વૈમાનિક દેવો પર્યન્તના જી વિશે આ દડક પ્રમાણે જ કથન કરવું જોઈએ. પરંતુ મનુષ્યમાં ક્રિયાઓ વિષેનું કથન છના કથન પ્રમાણે જ સમજવું જોઈએ.

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