Book Title: Astavakra Gita
Author(s): Raibahaddur Babu Jalimsinh
Publisher: Tejkumar Press

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Page 10
________________ ا पहला प्रकरण । س महात्मा को दण्डवत-प्रणाम नहीं करता है, किन्तु वह अपनी जाति और धनादिकों के अभिमान में ही मरा जाता है, सो ऐसा भी राजा नहीं क्योंकि हमको महात्मा जानकर हमारा सत्कार कर, अपने भवन में लाकर, संसारबंधन से छूटने की इच्छा करके जिज्ञासुओं की तरह राजा ने प्रश्नों को किया है । इसी से सिद्ध होता है कि राजा जिज्ञासु अर्थात् मुमुक्षु है और आत्म-विद्या का पूर्ण अधिकारी है, और साधनों के बिना आत्म विद्या की प्राप्ति नहीं होती, इस वास्ते अष्टावक्रजी प्रथम राजा के प्रति साधनों को कहते हैं। मूलम् । अष्टावक्र उवाच । मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्त्यज । क्षमाजवद यातोषसत्यं पीयूषवद्मज ॥ २ ॥ पदच्छेदः । मुक्तिम्, इच्छसि, चेत्, तात, विषयान्, विषवत्, त्यज, क्षमार्जव दयातोषसत्यम्, पीयूषवत्, भज ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । अन्वयः । शब्दार्थ। तात हे प्रिय ! +च-और चेत्न्यदि क्षमाजव- मुक्तिम्-मुक्ति को क्षमा, आर्जव, दयातोष-= दया, संतोप और इच्छसि-तू चाहता है, तो सत्यम्- सत्य को विषयान्-विषयों को विषवत्-विष के समान पीयूषवत् अमृत के सदृश त्यज-छोड़ दे भज-सेवन कर ॥

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