Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ त्रैयोग से हों संयमी निर्ग्रन्थ अन्तर-बाह्य से। त्रिकरण शुध अर पाणिपात्री मुनीन्द्रजन दर्शन कहें॥१४॥ सम्यक्त्व से हो ज्ञान सम्यक् ज्ञान से सब जानना। सब जानने से ज्ञान होता श्रेय अर अश्रेय का॥१५।। श्रेयाश्रेय के परिज्ञान से दुःशील का परित्याग हो। अर शील से हो अभ्युदय अर अन्त में निर्वाण हो॥१६॥ जिनवचन अमृत औषधी जरमरणव्याधि के हरण। अर विषयसुख के विरेचक हैं सर्वदुःख के क्षयकरण॥१७॥ एक जिनवर लिंग है उत्कृष्ट श्रावक दूसरा। अर कोई चौथा है नहीं, पर आर्यिका का तीसरा॥१८॥ (१०)

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