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संयमसहित निजध्यानमय शिवमार्ग ही प्राप्तव्य है। सद्ज्ञान से हो प्राप्त इससे ज्ञान ही ज्ञातव्य है ॥२०॥ है असंभव लक्ष्य बिधना बाणबिन अभ्यासबिन। मुक्तिमग पाना असंभव ज्ञानबिन अभ्यासबिन ॥२१॥ मुक्तिमग का लक्ष्य तो बस ज्ञान से ही प्राप्त हो। इसलिए सविनय करें जन-जन ज्ञान की आराधना ॥२२॥ मति धनुष श्रुतज्ञान डोरी रत्नत्रय के बाण हों। परमार्थ का हो लक्ष्य तो मुनि मुक्तिमग नहीं चूकते॥२३॥ धर्मार्थ कामरु ज्ञान देवे देव जन उसको कहें। जो हो वही दे नीति यह धर्मार्थ कारण प्रव्रज्या।।२४।।
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