________________
जो मूढ़ अज्ञानी तथा व्रत समिति गुप्ति रहित हैं । वे कहें कि इस काल में निज ध्यान योग नहीं बने ||७५ || भरत - पंचमकाल में निजभाव में थित संत के । नित धर्मध्यान रहे न माने जीव जो अज्ञानि वे ||७६ || रतनत्रय से शुद्ध आतम आतमा का ध्यान धर । आज भी हों इन्द्र आदिक प्राप्त करते मुक्ति फिर ॥७७॥ जिन लिंग धर कर पाप करते पाप मोहितमति जो ।
वे च्युत हुए हैं मुक्तिमग से दुर्गति दुर्मति हो । ७८ ।। हैं परिग्रही अधः कर्मरत आसक्त जो वस्त्रादि में । अर याचना जो करें वे सब मुक्तिमग से बाह्य हैं ॥७९॥ ( ९३ )