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लिंगपाहुड़
कर नमन श्री अरिहंत को सब सिद्ध को करके नमन । संक्षेप में मैं कह रहा हूँ, लिंगपाहुड शास्त्र यह ॥१॥ धर्म से हो लिंग केवल लिंग से न धर्म हो। समभाव को पहिचानिये द्रवलिंग से क्या कार्य हो ॥२॥ परिहास में मोहितमती धारण करें जिनलिंग जो । वे अज्ञजन बदनाम करते नित्य जिनवर लिंग को ॥३॥ जो नाचते गाते बजाते वाद्य जिनवर लिंगधर । हैं पाप मोहितमती रे वे श्रमण नहिं तिर्यंच हैं ॥४॥
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