Book Title: Ashtapahud Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 96
________________ जिनवरकथित उपदेश यह तो कहा श्रमणों के लिए। अब सुनो सुखसिद्धिकर उपदेश श्रावक के लिए ॥८५।। सबसे प्रथम सम्यक्त्व निर्मल सर्व दोषों से रहित । कर्मक्षय के लिये श्रावक-श्राविका धारण करें ॥८६॥ अरे सम्यग्दृष्टि है सम्यक्त्व का ध्याता गृही ।। दुष्टाष्ट कर्मों को दहे सम्यक्त्व परिणत जीव ही ॥८७॥ मुक्ति गये या जायेंगे माहात्म्य है सम्यक्त्व का । यह जान लोहे भव्यजन! इससे अधिक अब कहें क्या॥८८॥ वे धन्य हैं सुकृतार्थ हैं वे शूर नर पण्डित वही । दुःस्वप्न में सम्यक्त्व को जिनने मलीन किया नहीं ॥८९॥ (९५)

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