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भाव विरहित नग्नता कुछ कार्यकारी है नहीं। यह जानकर भाओ निरन्तर आतम की भावना ॥५५॥ देहादि के संग से रहित अर रहित मान कषाय से। अर आतमारत सदा ही जो भावलिंगी श्रमण वह॥५६॥ निज आत्म का अवलम्ब ले मैं और सबको छोड़ दूँ।
अर छोड़ ममताभाव को निर्ममत्व को धारण करूँ॥५७॥ निज ज्ञान में है आतमा दर्शन चरण में आतमा।
और संवर योग प्रत्याख्यान में है आतमा॥५८॥ अरे मेरा एक शाश्वत आतमा दृगज्ञानमय। अवशेष जो हैं भाव वे संयोगलक्षण जानने ॥५९॥
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