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इस तरह यह सर्वज्ञ भासित भावपाहुड जानिये । भाव से जो पढ़ें अविचल थान को वे पायेंगे ॥१६५।।
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यदि हम इस भगवान आत्मा को न समझ सके, इसका अनुभव न कर सके तो सबकुछ समझकर भी नासमझ ही हैं, सबकुछ पढ़कर भी अपढ़ ही हैं, सबकुछ अनुभव करके भी अनुभवहीन ही हैं, सबकुछ पाकर भी अभी कुछ नहीं पाया है - यही समझना।
- गागर में सागर, पृष्ठ-४५
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