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सर्वानवों के रोध से संचित करम खप जाय सब । जिनदेव के इस कथन को योगस्थ योगी जानते ॥३०॥ जो सो रहा व्यवहार में वह जागता निज कार्य में । जो जागता व्यवहार में वह सो रहा निज कार्य में ॥३॥ इमि जान जोगी छोड़ सब व्यवहार सर्वप्रकार से । जिनवर कथित परमातमा का ध्यान धरते सदा ही ॥३२॥ पंच समिति महाव्रत अर तीन गुप्ति धर यती । रत्नत्रय से युक्त होकर ध्यान अर अध्ययन करो ॥३३॥ आराधना करते हुये को अराधक कहते सभी । आराधना का फल सुनो बस एक केवलज्ञान है ॥३४॥
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