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मोक्षपाहुड़
परद्रव्य को परित्याग पाया ज्ञानमय निज आतमा । शत बार उनको हो नमन निष्कर्म जो परमातमा ॥१॥ परमपदथित शुध अपरिमित ज्ञान-दर्शनमय प्रभु । को नमन कर हे योगिजन ! परमात्म का वर्णन करूँ ॥२॥ योगस्थ योगीजन अनवरत अरे ! जिसको जान कर। अनंत अव्याबाध अनुपम मोक्ष की प्राप्ति करें ॥३॥ त्रिविध आतमराम में बहिरातमापन त्यागकर । अन्तरात्म के आधार से परमात्मा का ध्यान धर ||४||
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बाध