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ये इन्द्रियाँ बहिरात्मा अनुभूति अन्तर आतमा । जो कर्ममल से रहित हैं वे देव हैं परमातमा ||५|| है परमजिन परमेष्ठी है शिवंकर जिन शास्वता । केवल अनिन्द्रिय सिद्ध है कल - मलरहित शुद्धातमा ||६|| जिनदेव का उपदेश यह बहिरातमापन त्यागकर । अरे ! अन्तर आतमा परमात्मा का ध्यान धर ||७| निजरूप से च्युत बाह्य में स्फुरितबुद्धि जीव यह । देहादि में अपनत्व कर बहिरात्मपन धारण करे ॥८॥ निज देहसम परदेह को भी जीव जानें मूढ़जन । उन्हें चेतन जान सेवें यद्यपि वे अचेतन ||९||
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